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________________ श्री ममल पाहुड जी (१४) उत्पन्न छंदगाथा गाथा २३८ से २६२ तक (विषय: सक १७) उव उवनह उवन सहाउ लई, उव उवन भाउ संसुद्ध पऊ । उव उवनउ केवल समय पउ, सिहु समय सिद्धि संपत्तऊ ॥ १ ॥ उबंकार जिनुत्तु पऊ, न्यान विन्यान संजुत्तऊ । उव उवन सहावे दर्सियऊ, उव उवन सिद्धि संपत्तऊ ।। २ ॥ उवन उवन जुत्तऊ, उन भय गलंतऊ। उवन न्यान रत्तऊ, उवन मिथ्या चत्तउ ॥ ३ ॥ उवन पंथ दर्सिऊ, उवन मल विलंतऊ । उवन मुक्ति रत्तऊ, सु पर्जय रय गलंतऊ ।। ४ ।। उवन सिद्धि पंथऊ, कम्मान बंध चत्तऊ । उवन विक्त रूवऊ, सो कम्म षिपक सूरऊ ॥ ५ ॥ लष्य लष्यनो, उवन पय वियष्यनो। उवन दिस्टि दर्सिऊ, उवन इस्टि रस्टिऊ ॥ ६ ॥ उवन उत्त जुत्तऊ, ससंक भय विलंतऊ। उवन परिनै जुत्तऊ, उन कम्म चत्तऊ ॥ ७ ॥ समय सत्तऊ, अन्यान विलय रत्तऊ । न्यानेन न्यान जुत्तऊ, अन्यान भय गलंतऊ ॥ ८ ॥ उवन परम इस्टिऊ, सुयं सुभाव दिस्टिऊ । सहयार सुद्ध साहिऊ, अन्मोय इस्टि ग्राहिऊ ॥ ९ ॥ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उवन रमन रत्तऊ, उवन उत्त जुत्तऊ । उवन वयन रत्तऊ, उवन समय स उत्तऊ ॥ १० ॥ संमत्त सुद्ध साहिऊ, सम समय दिस्टि राहिऊ । सो षिपक भाव पिषकऊ, सो ममल भाव ममल पऊ ।। ११ ।। सो अषय रूव रूवऊ, सो सुरस दिस्टि सूरऊ । उवन नंत दर्सिऊ, उत्पन्न न्यान सरसिऊ ॥ १२ ॥ उवन राग पंडनो, जनरंजन भय विहण्डनो । कलरंजन दोष गलि गऊ, सु विंद रमन उर्वन पऊ ॥ १३ ॥ मोहंध दर्स अदर्सिऊ, उत्पन्न दर्स दर्स मऊ । निसंक रूव रयन पऊ, ससंक भय विलंतऊ ॥ १४ ॥ न्यानेन न्यान समय मऊ, आवर्न न्यान विलय गऊ । सुदर्सन नंत दर्सिऊ, आवर्न दर्स गलंतऊ ॥ १५ ॥ उत्पन्न मोह उवन पऊ, सो मोह मय विलंतऊ । विन्यान न्यान समय पऊ, अंतर सुभाउ विलय गऊ ॥ १६ ॥ सो न्यान वंक अर्वकऊ, अन्यान वंक सुवंकऊ । सो सरनि भय विरत्तऊ, सो मुक्ति पंथ रत्तऊ ॥ १७ ॥ अवयास यास जुत्तऊ, आसा सुभाव विरत्तऊ। अन्मोय न्यान सत्तऊ, अस्नेह भय विलंतऊ ॥ १८ ॥ सो राग सर्म चत्तऊ, सो लाज भय विलंतऊ । सो अलब्धि लब्धि जुत्तऊ, सो लब्धि सुह विरत्तऊ ॥ १९ ॥ सो अभय भय गलंतऊ, सो भय ससंक विलंतऊ । सो न्यान ग्राह वजऊ, सो गारव भय गलंतऊ ॥ २० ॥
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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