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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुड जी ऐ यह न्यान जु सहियौ, सिद्ध सरूव स उत्तु । ऐ यह अवहि विन्यानी, तिविहि कम्मु विलयंतु ॥ १३ ॥
॥ ऐ यहु.॥ ऐ यहु उवनु जु दाता, देव सहाउ संजुत्तु । ऐ यहु ममलु जु केवल, पद विंदह संजुत्तु ॥ १४ ॥
॥ऐ यहु.॥ जह जह कम्मु जु उपजै, समल सहाउ संजुत्तु । ये यहु तह तह विलियौ, सुद्ध सहाउ संजुत्तु ॥ १५ ॥
॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु कम्मु अनंतु जु, अन्यानह संजुत्तु ।। ऐ यह न्यान अन्मोयह, कम्मु उपत्ति विलयंतु ॥ १६ ॥
॥ऐ यहु.॥ ये यहु कम्मु जु उपजिऊ, नंतानंत भमंतु । ऐ यहु न्यान सहावह, अनादि कम्मु विलयंतु ॥ १७ ॥
॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु अन्यान जु सहियौ, अन्मोय विरोह संजुत्तु । ऐ यहु अंतर्मुहूर्त, अन्मोय न्यान विलयंतु ॥ १८ ॥
॥ऐ यहु.॥ ऐ यहु ममल सहावह, कम्मु उवनु विलयतु । ऐ यहु भय विनासु है, ममल सिद्धि सम्पत्तु ॥ १९ ॥
॥ ऐ यहु.॥
(२२) कमल सुभाव माथा
गाथा ४१९ से ४४६ तक (विषय : अक्षर, स्वर, व्यंजन, पद और अर्थ
शब्द की विशेषता, कमल स्वभाव की महिमा, १७ सक) कमल सुभावं सहियं, अभ्यर सुर विजनस्य पद सहियं । ममल सहाव संजोयं, भय षिपियं अभय दिस्टि ममलं च ॥ १ ॥ कमलं सहज सरूवं, अध्यर रमनं च अषय पद सहियं । भय षिपनिक सुरं च सुरयं, विजन विन्यान ममल सहकारं ॥ २ ॥ कमल संजोय स दिट्ट, पद दर्स परम तत्तु पद विंदं । सर्वन्यं ममल सहावं, भय षिपियं भव्य कम्म संषिपनं ॥ ३ ॥ कमलं कमल सहावं, पद अर्थ परम अर्थ संदर्स । अर्थति अर्थ ममलं, भय षिपियं तिअर्थ दिस्टि ममलं च ॥ ४ ॥ कमलं कमल उपत्ती, समर्थ समय सुद्ध संदिस्टि । हितमित परिनै ममलं, ममलं सहकार अर्थ संदर्स ॥ ५ ॥ कमल सहाव अवयासं, अवयास अर्थ न्यान अवयास । अवयासं नंतानंतं, भय षिपिय भव्वु न्यान विन्यानं ॥ ६ ॥ कमल सहावं रमियं, रमियं समयं च न्यान विन्यानं । न्यानं ममल सहावं, न्यान सहावेन ससंक भय षिपियं ॥ ७ ॥ कमलं लंकृत सहियं, न्यानं विन्यान सुद्ध सहकारं । अन्यान समय विलयं, भय षिपियं ममल न्यान सद्भावं ॥ ८ ॥
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