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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी तरुवा तं रुइयौ रूव अरूवं, उत्पन्न हिययार सहयार थुनंतु । सु न्यान विन्यानह समय स उत्तु, अन्मोय संजुत्तऊ मुक्ति पहुंतु ॥ १६ ॥ - घत्ताइय तरुवा संजोयऊ, न्यान विन्यान सु ममल पऊ । तत्काल उवन्न सहाउ, भय षिपिय भव्वु सो मुक्ति गऊ ॥ १७ ॥ श्री ममल पाहुइ जी तरुवा तं तरनह सरनि विमुक्कु, सु न्यान सहावे ममल मुनंतु । आसा अस्नेह सुभाउ गलंतु, सो लाज लोभ भय गार गलंतु ॥ १० ॥ विभ्रम विरोह सुभाव गलंतु, ___ जनरंजन राग दोस विलयतु । कलरंजन पर्जय दिस्टि गलंतु, मनरंजन गारव सरनि विमुक्कु ॥ ११ ॥ दर्सन मोहह मय अंधु विलंतु, तं न्यान सहावे दोस गलंतु । सु न्यान विन्यानह जिनह सउत्तु, सु भय षिपनिक है भव्वु पउत्तु ॥ १२ ॥ अप्पउ परि आनिउ न्यान विन्यानु, पर पर्जय गलियो कम्मु उवन्नु । न्यानेन न्यान विलयंति कम्मु, तं सहज ऊपजई परम धम्मु ॥ १३ ॥ परमप्पय परम सुभाव संजुत्तु, पद अर्थह परम तत्तु जिन उत्तु । सो जिनवर उत्तउ जिनय पउत्तु, सु ममल सहावे कम्मु गलंतु ॥ १४ ॥ सु न्यानावर्नु न दर्सियऊ, पर पर्जय सरनि न पेषियऊ । तरुवा तं तरनह न्यान सहाऊ, सु भय षिपनिक है ममल सुभाऊ ॥ १५ ॥ (२६) कंठ छंद माथा गाथा ४९८ से ५१० तक (विषय : कमल दल और अर्थ पय) कमल कंठ जिन उवन पऊ, उव उवन उवन दर्सतऊ । उव उवन सहावे विंदरऊ, सो कमल विंद सिद्धि रत्तऊ ॥ १ ॥ भय षिपनिक अभय उवन्न पऊ, उव उवन हिययार संजुत्तऊ । सहयार तरन सुइ उवन मऊ, तं अर्क विंद सुइ सिद्ध ॥ २ ॥ सो कंठ रमन जिन उवन सहाऊ, सो भय षिपनिक रस अमिय संजुत्तऊ । सो कमल कंठ सुइ न्यान उर्वनु, सो सुयं सरूवे ममल पर्वनु ॥ ३ ॥ सु कमल उवन्नऊ केवल उत्तु, सो उत्त जिनुत्तउ उवन संजुत्तु । सु उवन उवन हिययार पउत्तु, सो उवनउ ममल सहयार संजुत्तु ॥ ४ ॥ (१८४
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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