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श्री ममल पाहुइ जी उवनौ विंद विन्यानह सहियौ, परमानंद सहाउ । अमिय सरूवे मुक्ति संजोए, धम्म सिद्धि सभाउ ॥ ११ ॥
॥हो जोगी.॥ उवनौ नंतानंत चतुस्टै, परम इस्टि परमिस्टि । इस्टि रिस्टि सुइ ममल विन्यानी, भय विनस्य सुइ रिस्टि ॥ १२ ॥
॥हो जोगी.॥ सिस्टि सहावे उस्टि संजोए, सहकार इस्टि ससहाउ । अवयास इस्टि तं ममल सरूवे, भय षिपिय मुक्ति संभाउ ॥ १३ ॥
॥हो जोगी.॥ अन्मोय इस्टि तं अमिय सरूवे, षिपक इस्टि जिन उत्तु । धम्म सहावे सिद्धि सरूवे, मुक्ति इस्टि संजुत्तु ॥ १४ ॥
॥हो जोगी.॥ जिनवर उत्तउ सहज सरूवे, मुक्ति पंथु सह नंदु । दिस्टिहि सहियउ ममल सरूवे, भय षिपिय नंद परमनंदु ॥ १५ ॥
॥हो जोगी.॥ नन्त सौष्य तं अमिय सरूवे, दिस्टि सहाव स उत्तु । धम्म सरूवे सिद्धि सहावे, सहजे मुक्ति पहुंतु ॥ १६ ॥
॥हो जोगी.॥ ह्रियंकार हितकारह सहियो, अरुह सुभाउ स उत्तु । हींकारह सु ममल सुभावह, भय विनस्य सिद्धि संपत्तु ॥ १७ ॥
॥हो जोगी.॥ ह्रींकारह हिययार सु सहियो, अमिय रमन रस उत्तु । अर्थति अर्थह न्यान विन्यानह, धम्मह सिद्धि संजुत्तु ॥ १८ ॥
॥हो जोगी.॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी हिययारह हिययार उनऊ, हिय हुतकार संजुत्तु । ममल सहावे अर्क विंद है, भय षिपिय सिद्धि संजुत्तु ॥ १९ ॥
॥हो जोगी.॥ हिययारह तं रमनह सहियौ, अमिय महारस जुत्तु । न्यान सहावे पिपनिक रूवे, धम्मह मुक्ति पहुंतु ॥ २० ॥
॥हो जोगी.॥ हिययारह उववंन संजुत्तउ, सहयारह सम दिट्ठी । ममलह ममल सहाव संजुत्तउ, भय षिपिय सिद्धि सम्पत्तु ॥ २१ ॥
॥हो जोगी.॥ सहयारह ससहाउ संजुत्तउ, अमिय वयन जिन उत्तु । हिययारह उववन्नु सु सहियो, धम्म रमन सिव पंथु ॥ २२ ॥
॥हो जोगी.॥ सहयारह संजोगे भवियन, हिययार दिस्टि उवएसु । भय विनासु तं भव्वु उवन्नऊ, ममल सिद्धि सम्पत्तु ।। २३ ।।
॥हो जोगी.॥ सहयारह संजोगे जोगी, अमिय रखन रस जुत्तु । तारन तरन सहावह सहजे, धम्म रमन सिवसंतु ॥ २४ ॥
॥हो जोगी.॥ उववन्नह हिययार स उत्तउ, सहयारह ममल सहाउ । अर्थति अर्थह ममलह सहियौ, भय विपकु सिद्धि सम्पत्तु ।। २५ ॥
॥ हो जोगी.॥