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श्री ममल पाहुइ जी परम गुपित परमप्प जिनु, पर पर्जय विलयतु । भय षिपनिक भव्वु जु अमिय मउ, ममल परम गुरु उत्तु ॥ १७ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, गुरु परम मुक्ति दर्सतु । उवन हिययार सहयार सिरी, गुरु परम मुक्ति विलसंतु ॥ १८ ॥
(४) श्री ध्याबहु फूलना
गाथा ४६ से ६२ तक (विषय : अन्तरात्मा गुरू और परमात्मा परम गुरु का
ध्यान करने की प्रेरणा, धर्म - कर्म का मर्म) ध्यावहु रे गुरु, गुरह परम गुरु, भव संसार निवारै । न्यान विन्यानह केवल सहियो, आप तिरे पर तार ॥ १ ॥
॥आचरी॥ परम गुरह उवएसिउ लोयह, न्यान विन्यानह भेउ । भय विनासु भव्वु तं मुनि है, उव उवनउ दाता देउ ॥ २ ॥
॥ ध्या, ॥ देउ उर्वनउ दिट्टर दीन्हउ, लोयालोय उवएसु । परम देउ परम सुइ उवने, परम ममल सुपएसु ॥ ३ ॥
॥ ध्या.॥ परम देउ परमप्पा सहियो, नंतानंत सु दिट्ठी ।। नंत गुपित विन्यान उर्वनउ, ममल दिस्टि परमिस्टी ॥ ४ ॥
॥ ध्या. ॥ जिन उवएसिउ भव्यह लोयह, अर्थति अर्थह जोउ ।। षट् कमलह तं विमल सुनिर्मल, जिम सूषम कम्म गलेइ ॥ ५ ॥
॥ ध्या, ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी चिदानंद जिनु कहिउ परम जिनु, सुकिय सुभाव सुदिट्ठी । अर्थति अर्थह कमलह सहियो, सहजनंद जिन दिट्ठी ॥ ६ ॥
॥ ध्या. ॥ जिनवर उत्तर सुद्ध परम जिनु, मर्म कम्मु स जिनेई ।। जह जह समयह कम्मु उपज्जइ, न्यान अन्मोय षिपेई ॥ ७ ॥
॥ ध्या. ॥ जह जह थानह कम्मु ऊपजड़, कम्मह कम्म सहाई । न्यान अन्मोयह तं तं विलियउ, मर्म कर्म सु जिनेई ॥ ८ ॥
॥ ध्या. ॥ परम जिनं परमष्यरु गहिओ, परमानंद सहाई । परम सुभावह न्यान विन्यानह, केवल सहियो सोई ॥ ९ ॥
॥ ध्या. ॥ धम्मु जु धरियउ जिनवर उत्तउ, न्यान विन्यान सुभाउ । जह जह कम्मु उपति स दिट्ठी, तह तह षिपन सहाउ ॥ १० ॥
॥ ध्या. ॥ परम धम्म परमप्पय सहियो, परम भाउ उवलद्धी । परम निरंजनु अंजन रहिओ, ममल भाव सिव सिद्धी ॥ ११ ॥
॥ ध्या. ॥ दर्सन सहियो दिस्टि अन्मोयह, परिनै न्यान सहाउ । परमानह सो चरनु उपज्जै, अन्मोयह ममल सहाउ ॥ १२ ॥
॥ ध्या. ॥ चष्य अचष्यह अवहि जु सहियो, न्यान विन्यान संजुत्तु । कम्मु उपत्तिहि कम्मु जु विलियो, न्यान अन्मोय स उत्तु ॥ १३ ॥
॥ ध्या. ॥
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