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________________ श्री ममल पाहुड़ जी ३ पर्जय विओय विनंदं पर्जय सहकार सरनि संसारे । जिन उत्त वंक रूवं, न्यानं अन्मोय विनंद विलयंति ॥ जिन अन्मोय सहावं, उववन्नं नंद सीह सभावं । गयंद गर्ज विलयं, जिन अन्मोय अबलबलियं च ॥ विषय सहाव अनंतं विषयं अनेय विंद विष सहियं । विषय विंद विष घट उत्तं, न्यानं अन्मोय विषय गलियं च ॥ भुक्त विनन्द सुभावं जिन उत्पन्न नंत भवयानं । सूषिम परिनाम विसेषं, जिन अन्मोय विनंद विलयंति ॥ विषय सुभाव अभावं विषयं परिनाम विविह भेयं च । अमिय पयोहर रसियं, अन्मोयं वसिय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ५ २ 11 ४ ६ || 11 II ॥ २- पात्र गाथा - ७ ॥ ८ ॥ यं तारन तं विनयं अहं पर्जाव अनिस्ट रूवेन । निर्गुन नंत विसेषं, तुम्हं अन्मोय सगुन पिच्छंति ॥ अहं पर्जावं सहियं निर्बुहि दोषं च नंत संजुतं । तुव स्रवनं पिसुन स उत्तं, तुम्हं अन्मोय अहं दोष विलयंति ॥ पर्जावं अहं विसेषं, नंत दोषं च पिसुन विस्थरियं । संसय तुव उववन्नं, तुम्हं अन्मोय दोष सुइ गलियं ॥ अहं पर्जाव असुद्धं, पिसुनं केनापि पयं पिय तुम्हं । तुम्ह विप्रिय संसयनं, तुम्हें अन्मोय अहं ममलं च ।। १० ।। ९ || २७३ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ३- चोर चरपट गाथा - उवनं, अन्यान न्यानं विलं । चोरं चरपट नंत नंत आवन सुइ रयनि रमन सुवनं, दुस्टं च साहू गुनं ।। ११ ।। चोरं चरपट गुनह साहु सुवनं, मरनं सुयं साहुवं । चोरं अग्र प्रवर्तते दिप्ति रयनी, पारं परं जीवनं ।। १२ ।। ४- चेला चेली गाथा - चेला रे चेली जाल जंजाला, चेला रे चेली प्रतष्य काला । चेला कर उतौ दुहु कुल सुद्धा, हीरा मानिक रयन अवेधा ॥ रसह गलहि जे विरस रसेई, गुरू के वयन अवध करि लेई । रूसे तूसे मनह अभंगा, ऐसे चेला लाऊ संगा ॥ १३ ॥ ५- जुगयं पंड गाथा - जुगयं षंड सुधार रयन अनुवं, निमिषं सु समयं जयं । घटयं तुंज मुहूर्त प्रहर प्रहरं, दुतिय पहरं ॥ चत्रु प्रहरं दिप्ति रखनी वर्ष सुभावं जिनं । वर्षं पिति सु आऊ काल कलनं, जिन दिप्ति मुक्ति जयं ॥ १४ ॥ ६- आसीर्वाद गाथा - उवनं उवन उवन्न उवं सु रमनं, दिप्तिं च दिस्टि मयं । हिययारं तं अर्क विंद रयन रमनं, सब्दं च प्रियो जुतं ॥ सहयारं सह नंत नंत रमन ममलं, उववन्नं साहं धुवं । श्रुतं देव उववन्न जय जयं च जयनं, उत्पन्नं मुक्ति जयं ।। १५ ।।
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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