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श्री ममल पाहुइ जी तत्काल रमन सुइ उवनं,
उवनं सुइ रमन रयन जिन जिनयं । जिन उवनं पय उवनं,
पय उवन कमल साहि सुइ कनँ ॥ २६ ॥ रमनं रमन सु सुवनं,
रमियौ सुइ चरन कलन अन्मोयं । कलन कमल चर चरनं,
चरनं सम उवन कर्न सुव समयं ॥ २७ ॥ रमन कमल सुइ उवनं,
उवनं सुइ उवन मुक्ति गमनं च । गम अगम लषिय अलष्यं,
अलषं सुइ लषिय कर्न निर्वानं ॥ २८ ॥ कंठ कमल जिन जिनयं,
जिनयं जय जयो जयो जय रमनं । नंत विसेष सु चरनं,
चरनं सुइ कमल कर्न निर्वानं ॥ २९ ॥ कमल कलन सुइ उवनं,
उवनं सुइ कलन कमल चर सुवनं । सुवन समय सुइ उवनं,
उवनं सुइ कमल सुवन निर्वानं ॥ ३० ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१८)धुव उवन साहि सिय अर्क गाथा
गाथा १९९७ से २०२५ तक
(विषय : अर्क-३६, विवान-१, पय-१२, दिप्ति-१४) उक्तं नंत जिनं जिनय जिन जिनं, जिनयं जिनं जय पदं । जैवंतं जय जय जयं च जिनयं, जिनयं जयं सास्वतं ॥ जैवतं जय नंत नंत ममलं, उत्पन्नं सज्जन जनं । उवनं कलन स कमल कर्न समयं, उत्पन्नं सज्जन जनं ॥ १ ॥ सज्जन जन उववन्न उवन उवनं, उववन्नं साध धुवं । उववन्नं धुव कलन कमल उवनं, कनं च सज्जनं समं ॥ दिप्तिं दिस्टि प्रवेस दिस्टि दिप्तिं, सब्दं च प्रियो जुतं । नंतानंत सु अर्क अर्क उवन कमलं, कर्न च सज्जनं जनं ॥ २ ॥ अकै अर्क उवन उवन्न उवनं, कलनं च कलनं धुवं । कलनं नंत अनंत नंत कलनं, कमलं च उवनं जिनं ॥ कमलं केवल उवन उवन उवनं, उत्पन्नं अकै मयं । कलनं कमल सुयं सुयं च रमनं, कलनं च कमलं धुवं ॥ ३ ॥ जं जं अर्क सु अर्क अर्क उवनं, अर्क सु अर्क मयं । नंतानंत सु अर्क अर्क रमनं, अर्क प्रवेसं धुवं । तं अकै आयरन उवन कलनं, अकं सु अर्क समं । सहयारं हिय रमन कलन कलियं, कलियं च जिनयं जिनं ॥ ४ ॥ कलनं कलन स नंत नंत ममलं, अर्क स अकै समं । अकै अर्क प्रवेस अर्क समयं, समयं सुयं धुव पदं ॥ सिय उवनं धुव अर्क अर्क रमनं, उत्पन्नं कर्न समं । कर्न सुवन उवन्न उवन कमलं, कमलं च जिनयं जिनं ॥ ५ ॥