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________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अन्मोद पंचेन्दिय सुभाव जीव उत्पन्न भ्रमनं करोति। अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद विन्यान न्यान अन्मोद न दिस्टते । अन्यान अन्मोद इंदी सुभाव पंचेन्दी सुभाव संसार सरनि भ्रमनं करोति । जदि कदि कालांतर सुकीय सुभाव न्यान अन्मोद अतेन्दी सुभाव, अतेन्दी सहकार, अतेन्दी इस्ट, अतेन्दी उत्पन्न न्यान, इस्ट न्यान, इस्टि न्यान, वयन आलाप न्यान, परिनै न्यान.समय न्यान.दर्स न्यान. औकास न्यान, अन्मोद अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद कम्म षिपति । इंदी विषय विलय, रंज रमन आनंद अतेन्दी न्यान अन्मोद । राग, दोष, गारव, दर्सन मोहांध, न्यान आवर्न, घाति कम्म, मिथ्या कषाय, सक, सल्य, संक, भय विलयंति । न्यान विन्यान अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद कम्म षिपति । नंत चतुस्टय परमिस्टी रयनत्तय सुर्य लब्धि -६ । रमन हितकार सहकार अनंत विसेष न्यान अन्मोद जिननाथ सुद्ध बुद्ध केवल सुभाव न्यान आचरन, संमत्त, वीर्ज, अनंत सौष्य, उवसम गुपित रमन । न्यान गुन व्रत, तव, दान, पडिमा, रयनत्तय, सिद्धि सुयं, लब्धि दर्स, लष्य रयनत्तय परमिस्टी। नयोग श्री, रयनत्तय श्री, सुभाव चतुस्टय रमन, जिननाथ रमन सुभाव विमल रयनत्तय, संकल्प विकल्प विलय, अतेन्दी सुभाव न्यान अन्मोद, कम्म विलय मुक्तिं गता सिद्ध धुवं सिद्धं भवति । पंचम अध्याय जिन सुभाव से मुक्ति गति निरूपन - जिन उक्तं जिन वयनं, जिन दर्स दर्सयंति जिन समयं । जिन सुभाव जिन ग्रहनं, जिन अन्मोय न्यान निव्वानं ॥ १ ॥ जिन रहनं जिन गहनं, जिन उवन हिययार सद्ध सड़ मिलनं । जिन सहयार सु रमनं, जिन विन्यान न्यान सुइ उवनं ॥ २ ॥ जिन अषयं जिनसुरयं, जिन पय जिनसमै जिनय जिन जिनयं । जिन सहकार सु ममलं, जिन अवयास नंत जिन वयनं ॥ ३ ॥ जिन कमलं जिन ममलं, जिन उत्तं जिन अर्थ तिअर्थ । जिन समय अर्थ सदर्थ, जिन सहयार नंत सुइ ममलं ॥ ४ ॥ जिन परिनै जिन प्रमानं, जिन उवएस नंतनंताए । जिन अन्मोद सु ममलं, जिन षिपनं जिनयति जिनंद विंदानं ॥ ५ ॥ जिन परमिस्टि सु चरनं, जिन संमत्त हृवं अवगहनं । जिन लंक्रित जिन विन्यानं, जिन जिनयति नंत कम्म बंधानं ॥ ६ ॥ जिन तत्तु दव्व पयत्थं, जिन दिळं दव्व दिस्टि इस्टं च । जिन काय क्रांति जिन उवनं, जिन अन्मोद न्यान निव्वानं ॥ ७ ॥ जिन उत्त नंतनंतायं, नंत सुभावेन कम्म विलयंति । जिन नन्तानन्त सु दिटुं, जिन उत्पन्न नंत सिद्धि सिद्धानं ॥ ८ ॥ तस्य जिनय जिन वयनं, षलु सुभावेन किं सहकारेन किंकरि जानाति । ॥ इति चतुर्थोऽध्यायः समाप्तम् ॥ (१४९
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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