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________________ श्री चौबीस ठाणा जी षल सुभाव पल प्रियो, षल संस्थित पल सुभाव जिन वयनं ॥ ९ ॥ किं कारनं जानाति, किं विसेषनं रमनं पल प्रिथी सुभाव उत्पन्न, किन्नर किं पुरिस सुभाव, जिन उत्तं न रमनं किंकरि जानंति । षल सुभाव वयन पल सुभाव । जनरंजन राग जन सुभाव, जिन वयनं न रमति, तं सुभावेन किन्नर किं पुरुष उत्पन्नं भवति । जदिकदिकालांतर अनंत काल भ्रमत-भ्रमत सुद्ध बुद्ध सुद्ध सुभावेन जिनोक्त जिन न्यान अन्मोद न्यान रमन, न्यान विन्यान रमन सुभाव । सुयं लब्धि सोलही - सुभाव जनरंजन राग विलयं गतः, सक सत्रह (१७) विलयं गतः । निसंक रूव भय सल्य संक विलयं । निसंक सुभाव जिन अन्मोद, जिन रमन प्रतिपाद सूष्यम क्रिया प्रतिपात । जदि काल सुभाव ग्रहनं तदि काल उत्पन्न मनुष्य कल। जिन उक्त कलन कलित जिन उक्त ग्रहन अन्मोद न्यान, उत्पन्न न्यान वजनाराच रमन सुभाव, न्यान विन्यान मुक्त सुभाव मुक्ति गतः ।। पंक प्रिथी निरूपनजिन उत्तं सुह विमलं, जिन सहकारेन न्यान अन्मोयं । भय सल्य संक विलयं, अभय सहावेन सिद्धि संपत्तं ॥ १ ॥ जिन उक्त, जिन पद, जिन अभ्यर, जिन सुर रमन, जिन विन्यान, जिन पद, जिन सब्द, जिन दिस्टि, जिन उक्त, जिन समय, जिन परिनै, जिन प्रमान, जिन उक्त, जिन सहकार, जिन औकास, जिन अनंत चतुस्टय, जिन अन्मोद, जिन विपक, जिन मुक्ति, जिन उक्त, जिन वयन, जिन दर्स, जिन लष्य, जिन अलष्य, जिन गम्य, जिन अगम्य, जिन जिनयति जिन पद न दर्सते। अपद पद अनिस्ट अपकरन अप अनिस्ट पद, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी अनिस्ट व्रत, तव, क्रिया, अनिस्ट व्रती. अनिस्ट राग बंध, न्यान रमन न दिस्टते, न सार्धं करोति ॥ मिस राग बंध, राग सुभाव पंक प्रियो - पंक प्रिथी, महोरग, गंधर्व, जष्य, जय षिपक सुभाव जष्य वृत्ति उत्पन्न अजय ग्रहन जय विलय। जष्य सब्द जै षिपति, जष्य त्रि जाति उत्पत्ति अनंत संसार भ्रमनं, भवनवासिनो उत्पत्ति अस्तिति (स्थिति) भवति । जदि कदि अनंत काल भ्रमत-भ्रमत जदि न्यान उत्पन्न, केन सहकार- उत्पन्न न्यान रमन, न्यान अन्मोद जीव निकलै मनुष्य काल लब्धि प्राप्ति भवति ।। जं विपकं जं मलयं, मनस्य उववन्न सहाइ विलयति । विलयं कम्मनि बंधं, न्यानं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २ ॥ अनिस्ट इस्ट नहु पिच्छं, इस्टं अन्मोय उववन्न सुइ रमन । इस्ट इस्टंति न्यानं, उत्पन्नं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ ३ ॥ उवनं उवन सहावं, उवन हिययार न्यान विन्यानं । अर्क विंद हिय हुवयं, आगंतु रमन हिययार सिद्धि सम्पत्तं ॥ ४ ॥ उववन्न हिययार संजुत्तं, उववन्नं सहकार रमन विन्यानं । भय सल्य संक विलयं, पज्जय भय विलय न्यान उववन्नं ॥ ५ ॥ पज्जय सुभाव विलयं, न्यानं अन्मोय नंद जिन नंदं । न्यानं न्यान सु उवनं, उववन्नं अन्मोय सिद्धि सम्पत्तं ॥ ६ ॥ ॥ इति पंचमोऽध्यायः समाप्तम् ॥ ॥ इति श्री चौबीस ठाणा नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ॥ (१५०)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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