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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी जिह्वा परिनामु नंत विरयं,
नाना प्रकार न्यान सुरयं । जिह्वा विन्यान अनंतु ममलो,
भय षिपिय भव्वु तं मुक्ति गऊ ॥ १४ ॥
-घत्ताभय षिपिय अभय सुभाउ लइ, न्यान मई अनुरत्तऊ । तं तिविहि कम्मु विलयंतु सुइ, ममल सिद्धि संपत्तऊ ॥ १५ ॥
(१८) विदरऊ फूलबा
गाथा ३१८ से ३५२ तक (विषयासक १७, विद स्वभाव की महिमा, निर्विकल्प समाधि, भाव मोक्ष) जिन जिनयति जिनय जिनेंद पऊ ।
जिन जिनयति नंद अनंद परम जिन विंदरऊ ॥ १ ॥ विन्यान विंद रस रमनु अमिय रस विष विलऊ । भय षिपनिक है भव्वु कमल कलि मुक्ति गऊ ॥ २ ॥
॥ आचरी॥ जिन जिनवर उत्तउ जिनय पऊ । जिन जिनियौ कम्मु अनंतु जिनय जिन विंदरऊ ॥ ३ ॥
॥ विन्यान.॥ जं कम्मु अनंतु अनंतु भउ । । तं न्यान अन्मोय विलंतु सहज जिन विंदरऊ ॥ ४ ॥
॥ विन्यान.॥
जं कम्मु उवन उवंन मऊ । उववन्न न्यान विलयंतु परम जिन विंदरऊ ॥ ५ ॥
॥ विन्यान.॥ जं चरनह चरिय अनिस्ट मऊ । तं न्यान चरन विलयंतु नंद जिन विंदरऊ ॥ ६ ॥
॥विन्यान.॥ जं वय तव क्रिया अनिस्ट मऊ । तं इस्ट दर्स विलयंतु चेय जिन विदरऊ ॥ ७ ॥
॥ विन्यान.॥ जनरंजन राग जु रमिय पऊ । जिन रंजन न्यान विलंतु समय जिन विंदरऊ ॥ ८ ॥
॥ विन्यान.॥ कलरंजन कम्मु स उत्तु पऊ । तं कमल रमन विलयंतु सुयं जिन विंदरऊ ॥ ९ ॥
॥ विन्यान.॥ मनरंजन गारव कम्मु पऊ। मनरंजन न्यान विलंतु षिपक जिन विंदरऊ ॥ १० ॥
॥विन्यान.॥ जं दर्सन मोहे अंध पऊ । सुइ परम इस्ट विलयंतु ममल जिन विंदरऊ ॥ ११ ॥
॥ विन्यान.॥