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________________ श्री ममल पाहुड़ जी उव उवन उवन जै उवन पौ, तत्काल पिवं सिद्धि रत्तुंगा । पर परम परम सुड़ परम पौ, नय व्रित सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ४ ॥ ॥ उव. ॥ जं जयन जयन जय जयन पौ, तं तत्तु रमन आनंदूंगा । उव उवन सहावे जं उवनु, तं नंत सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ५ 11 ॥ उव ॥ जं जं अवगाहन उवन पौ, सासाहन उवनु समत्थुंगा । हा हलवं चिय सुड़ तरन पौ, सुइ सुयं सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ६ || ॥ उव. ॥ तत्काल क्रिनि सुइ उवन जै, सिय सिद्धि समय जिन उत्तुंगा । धिय बोधु न्यान केवल उवनु, उव उवन सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ७ || ॥ उव. ॥ जय जयन जल्प ध्रुव उवन पौ, उव उवन जयं जयवंतुंगा । तव तारन तरन जिन समय मौ, उव लब्धि सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ८ ॥ ॥ उव ॥ जो विलय काल कालंतर ए, कल कमल उवन विलसंतुंगा । रलि रमन रमन जिन उवन पौ, इय ईर्ज समय सिद्धि रत्तुंगा ॥ ९ ॥ ॥ उव ॥ सुइ सुयं सुयं सुइ जै रमनु, पा पार अपार तरंतुंगा । वा वारापार अनंत जै, ई ईर्ज सिद्धि संपत्तुंगा ॥ १० ॥ ॥ उव. ॥ ३७२ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी जो जं सुइ उवन अनंत मौ, जै जयो जयो जिन नंदुंगा । ई इस्टि ईर्ज सुइ उवन पौ, सह समय सिद्धि संपत्तुंगा ॥ ११ ॥ ॥ उव ॥ वन समय सुड़ साहि मौ, कलि कमल उवन धुव सिद्धुंगा । रै रमन सुवन सुइ कमल जै, ई ईर्ज धुवं सिद्धि रत्तुंगा ।। १२ ।। ॥ उव. ॥ सुइ सुयं सुयं जै रमन पौ, तत्काल मुक्ति दसैंतुंगा । ई ईर्ज समय सुइ उवन पौ, सह समय सिद्धि संपत्तुंगा ।। १३ ।। ॥ उव. ॥ उव उवन सहावे क्रिनि जै, पा पार अपार विलसंतुंगा । वा वारापार सुनंत पौ, इय ईर्ज कमल ध्रुव सिद्धुंगा ।। १४ ।। ॥ उव. ॥ सुइ श्रेनि उवनु जिनु नि पौ, जय जयो श्रेनि कलि श्रेनिंगा । सह साह कलन जिन श्रेनि पौ, जिन श्रेनि कलन सिद्धि रत्तुंगा ॥ १५ ॥ उव श्रेनि तार सुड़ तरन पौ, सुड़ कलन कमल ध्रुव उत्तुंगा ध्रुव उवन उत्तु सुइ समय मौ, सह समय सिद्धि संपत्तुंगा ॥ उव ॥ जय तारन तरन सु उवन पौ, सुइ उवन कमल विलसंतुंगा । सुड़ कलन चरन सुइ कमल पौ, सुइ कर्न समय सिद्धि रत्तुंगा ।। १६ ।। ॥ उव. ॥ । ॥ १७ ॥ ॥ उव. ।।
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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