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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममन पाहुइ जी उव उवन हिययार सहाये जिन हो,
जिन जिनियौ कम्मु अनंतु । भय षिपनिक तं अमिय रमन जिनु, तं कमल ममल जिन उत्तु हो ॥ ३ ॥
॥मा मुझु.॥ तं क्रांति इस्ट सुइ उवन जिनय जिनु,
अस्फटिक इस्ट उव उत्तु । रूव अरूव तं इस्ट उवन जिनु, तं सब्द वियार संजुत्तु हो ॥ ४ ॥
॥मा मुझु.॥ हितमित परिनै सब्द इस्ट पऊ,
कोमल केवल उत्तु । सब्द इस्ट तं उवन सहज जिनु, तं विंद कमल जिन उत्तु हो ॥ ५ ॥
॥मा मुझु.॥ मनपर्जय तं इस्ट उवन पौ,
गम्य अगम्य दर्संतु । हिययार रमन अन्मोय न्यान मऊ, तं अरुह रमन विहसंतु हो ॥ ६ ॥
॥मा मुझु.॥ अर्क सु अर्क सु अर्क अमिय रसु, ।
इस्ट उवन जिन उत्तु ।
विंद रमन सुइ कमल रमन जिनु, ममल रमन जिन उत्तु हो ॥ ७ ॥
॥मा मुझु.॥ आगंतु रमन हिययार सहज जिनु,
हुवयार रमन सुइ उत्तु । अन्मोय न्यान सुइ षिपक रमन जिनु, तं विंद रमन सिद्धि रत्तु हो ॥ ८ ॥
॥मा मुझु.॥ आयरन रमन अस्थान रमन जिनु,
गुप्ति इच्छ सुइ रमनु । पय पद इस्ट सु अर्थति अर्थह, तं मध्य ममल जिन उत्तु हो ॥ ९ ॥
॥मा मुझु.॥ मध्य रमन तं उवन उवन पउ,
गुप्ति ठकार सु इस्टु । मुक्त सुभावे मुक्ति रमन जिनु, भय षिपिय रमन संजुत्तु हो ॥ १० ॥
॥मा मुझु.॥ अन्मोय न्यान अस्थान रमन जिनु,
जिन तरन विवान स उत्तु । दिपि दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द रमन पिउ, सम विंद कमल सिद्धि रत्तु हो ॥ ११ ॥
॥ मा मुझु.॥
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