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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी उव उवन उवन उव उवन सहाई रे, उव उवन अन्मोय स न्यानी मुक्ति लहाई रे । एहु मुक्ति लहाई कलन सिरी मुक्ति लहाई रे, एहु मुक्ति लहाई चरन सिरि मुक्ति लहाई रे ॥ एहु मुक्ति लहाई जिनय जिन मुक्ति लहाई रे, एहु मुक्ति लहाई उवन जिन मुक्ति लहाई रे । एहु मुक्ति लहाई समय जिन मुक्ति लहाई रे ॥ २ ॥ ॥आचरी॥ उवन उवन वीरू श्रेनि सहाई रे, उव उवन अन्मोये श्रेनि उवनु रमाई रे । उव उवन अन्मोये श्रेनि मुक्ति लहाई रे, उव उवन सहाई कलन सिरि श्रेनि रमाई रे ॥ ३ ॥ ॥ उव. ॥ उव उवन उवन श्रेनि कलन सहाई रे, तं कलन उवन उवने रयन सहाई रे । दिपि दिप्ति रमनु रूव रमनु रमाई रे, कम कमल कलन रंजु उवन सहाई रे ॥ ४ ॥ ॥ उव. ॥ तं चरन उवन उवने मै रमन रमाई रे, तं रयन उवन उवने चरन चराई रे । तं रयन रमन रइ सुवन सहाई रे, तं चरन चरिउ सिद्धि मुक्ति लहाई रे ॥ ५ ॥ ॥ उव. ॥ हिययार कलन श्रेनि उवन सहाई रे, पद पदम रमन श्रेनि उवन सहाई रे । तं उवन उवन वय रमन रमाई रे, सुव सुयं रमन सुव रमन सहाई रे ॥ ६ ॥ ॥ उव. ॥ मै मयन चरन तं ममल रमाई रे, गय गमन अगम रै उवन सहाई रे । हिय उवन अगम रै उवन रमाई रे, हंसाहिय रमन कम कमल सहाई रे ॥ ७ ॥ ॥ उव. ॥ जं वज्र गहनु वज्र जै उवन सहाई रे, तं उवन उवने विनि विन्यान रमाई रे । वसु रमन रयन रै रयन सहाई रे, अन्मोय कलन श्रेनि मुक्ति लहाई रे ॥ ८ ॥ ॥ उव. ॥ जं विनय सिरी सुइ वन सहाई रे, तं उवन उवने वै सुवन रमाई रे ।
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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