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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी जनगन आंधलौ रे, न्यानी दिप्ति सभाई ।
जनगन सुनाहलौ रे, न्यानी सब्द सहाई ॥ ३ ॥ जनगन काहलो रे, न्यानी सुवन सुभाई ।
जनगन वेकलौ रे, जिनवरु कलन सहाई ॥ ४ ॥ जनगन विवर मै रे, न्यानी कमल सुभाई ।
जनगन वादिलो रे, न्यानी धुव वयनाई ॥ ५ ॥ जनगन असमै सै रे, न्यानी समय सहाई ।
जनगन बंध मै रे, न्यानी मुक्ति सुभाई ॥ ६ ॥ जनगन अनय सै रे, न्यानी न्यान सियाई ।
जनगन असिद्धि मै रे, न्यानी सिद्ध सुभाई ॥ ७ ॥ जिनवर उवन मै रे, न्यानी उवन हियाई ।
जिनवर हिय सहिऊ रे, न्यानी सह उवनाई ॥ ८ ॥ जनगन हिय विली रे, न्यानी हिय उवनाई ।
जनगन असह सै रे, न्यानी सह उवनाई ॥ ९ ॥ जनगन गम विली रे, न्यानी अगम सुभाई ।
जनगन लष विली रे, न्यानी अलष लषाई ॥ १० ॥ जनगन पै रइ रे, न्यानी परम पयाई ।
जनगन सरनि सुइरे, न्यानी मुक्ति रमाई ॥ ११ ॥
(९०१) पूर्व जय पूजा माथा
गाथा २१३५ से २१६२ तक
(विषय : अर्क-३६, पाँच अर्थ की महिमा) उव उवन उवन सुइ उवनं, उवनं सह समय उवन मै उवनं । उव उवन उवन मै उवनं, उवनं अन्मोय उवन नय नमियं ॥ १ ॥ उव उवन पयडि आयरनं, उवनं आयरन उवन निहि समयं । उवन साहि सुइ ममलं, उवनं अन्मोय साहि सिय उवनं ॥ २ ॥ उवनं सियं सुद्ध सियं सि उवनं,
सियं सुभावं कलनस्य उवनं । कलनं जिनुत्तं जिन नंत कलनं,
नंतं अनंतं धुव नंत कमलं ॥ ३ ॥ कमलं जिनुत्तं चरनस्य चरनं,
चरनस्य चरनं कलनस्य कमलं । कलनं सु चरनं कमलं अनंतं,
नंतं सु समयं अन्मोय कन ॥ ४ ॥ नंतस्य उवनं अन्मोय नंतं,
नंतं सु समयं अवयास नंतं । नंतं स चरनं कलनं अनंतं,
नंतस्य कमलं अन्मोय कन ॥ ५ ॥ उवनस्य नंतं अन्मोय श्रवनं,
अन्मोय श्रवनं उव उवन सुवनं । सु नंत साहं हिययार कर्न,
हिययार कर्न हुव नंत उवनं ॥ ६ ॥
(३३०)