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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी जाकी उवन रिस्टि इस्टि रै प्रलै पडै ।। ताकी उवन सिस्टि मति कोई रै रिस्टि कहै ॥ ४ ॥
॥ हम.॥ जाकी उवन सस्टि रै सहि प्रलै पडै । ताकी उवन दिस्टि कोई मति रै दिस्टि कहै ॥ ५ ॥
॥ हम. ॥ जाकी उवन साहि रै सहि प्रल पड़े। ताकी अवयास उवन मति कोई अवयासु कहै ॥ ६ ॥
॥ हम. ॥ जाकी उवन अनंत अनंत रै प्रलै पडै ।
ताकी अनंत न्यान मति कोई अंतरु लहै ॥ ७ ॥
जं उवन कलन सिरि दिप्ति दिप्ति सरै । रुई रमनु कलनु रंजु उवनु लहै ॥ ११ ॥
॥ हम. ॥ जं तरन कलन चर चरनु चरै । अन्मोय कमल कलि मुक्ति लहै ॥ १२ ॥
॥ हम. ॥
॥ हम. ॥
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(१०१) जय जय छन्दगाथा
गाथा २०४७ से २०७४ तक
(विषय : षिपक सोलही, दिष्टि चौदह) जय जय जयवंत जिनुत्तु पऊ,
जय जयो जयो जय उवन पऊ । जय नंत नंत जिन श्रेनि जयं,
जय कलन कमल जिनु मुक्ति जयं ॥ १ ॥ जय उवनं,
उव उवन उवन उवन विलसंतऊ । जय उवन उवन जिन रमन पऊ,
जय उवन सुइ समय सिद्धि संपत्तऊ ॥ २ ॥ जय उवन जयं जिननाथ पयं,
जय कलन कमल सुइ मुक्ति जयं । जय हिय उवनं अवयास पयं,
जय कमल कर्न सम मुक्ति जयं ॥ ३ ॥
जाके उवन अन्मोय न्यान निमिष रै प्रलै पडै । ताके मुकति रमनि जनि कोई मति अंतरु लहै ॥ ८ ॥
॥ हम. ॥ जाके अन्मोय अबलबली मुक्ति लहै । ताके उवन सिद्धि सुहु रमनि लहै ॥ ९ ॥
॥ हम. ।। जं तारन उवनु जिन समय सहै । तं समय अनंत सुइ सिद्धि लहै ॥ १० ॥
॥ हम. ॥
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