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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी विनय विंद सुइ समयं, सुनंद हिययार वज्र सिय उवनं । जानं जयवंत जिनुत्तं, लषनं सुइ लीन जिनय जिन रमनं ॥ ८ ॥ भद्र न्यान उवन्नं, मै उववन्न मै मूर्ति जिन रमनं ।। अन्मोय उवन जिन श्रेनि, कलन सहावेन मुक्ति गमनं च ॥ ९ ॥ विंदसी अर्क ।। १॥ सुइ समैसी अर्क ॥२॥ सुनंदसी अर्क ॥ ३॥ हिययार सी अर्क ॥ ४ ॥ जान सी अर्क ॥ ५ ॥ जैन सी अर्क ॥ ६ ॥ लषन सी अर्क ॥ ७॥ लीन सी अर्क ॥ ८ ॥ भद्र सी अर्क ॥ ९॥ मै उवन सी अर्क॥१०॥ सहज सी अर्क॥११॥ पै उवन सी अर्क।।१२।।
श्री ममल पाहुइ जी
(९९) पयोमसी अर्क गाथा
गाथा २०२६ से २०३४ तक
(विषय: पय-१२, ज्ञान उपयोग, स्व समय की महिमा) उवन सियं जिन रमनं, वज्र सहावेन श्रेनि जिन रमनं । विंद अर्क सुइ समयं, अर्क सुइ नंत विंद समयं च ॥ १ ॥ समय सहाव जिनुत्तं, समय सियं समय उत्त जिन उत्तं । सुनन्द नंद आयरनं, नंद अनंद नंद जिन नंदं ॥ २ ॥ हिययार रमन हिययारं, हिय हव साहि समय जिन उवनं । वज सहाइ सु सियनं, अन्मोयं जिन श्रेनि सिद्धि संपत्तं ॥ ३ ॥
॥ उवन रंज सुइ पुत्री - ४ ॥
॥ अन्मोय जिन श्रेनि - ४ ॥ जानं लोयालोयं, जयवन्तं अर्क नंत ममलं च । जय नंत नंत जिन रमनं, जयवंतं लोयलोय भय विलयं ॥ ४ ॥ लषन लषिय जिन उवनं, उवनं सुइ अर्क अन्मोय उव उवनं । लीनं लीन जिनु अर्क, उवनं सुइ लीन विंजनं सुरयं ॥ ५ ॥
|| अन्मोय रंज सुइ पुत्री-४॥
|| अन्मोय जिन श्रेनि - ४॥ भद्रं भय विलयंती, न्यानं उववन्न उवन रंजेड़ । मै उवन उवन सुइ रमनं, मै मूर्ति अन्मोय उवन सुइ अर्क ॥ ६ ॥ सहज सहावं उवनं, सहजोपनीत सहज परम सुभावं । पय उवन उवन पय रमनं, परमं सभाव उवन विलसंती ॥ ७ ॥
(९००) जाकी उवन सेज फूलना गाथा २०३५ से २०४६ तक
(विषय : दिष्टि चौदह) जाकी उवन सेज निमिष रति प्रलय पडै ।
ताके नयन कोइ मति अंजनु कहै ॥ १ ॥ हम बन्दे हो स्वामी तरन सनंदे ।
अन्मोय अबलबली तरन जिनंदे ॥ हम बन्दे हो स्वामी जिनय जिनंदे ॥ २ ॥
॥आचरी॥
जाकी उवन दिस्टि झड़प भी प्रल पडै । ___ताकी उवन दिस्टि कोई मति झड़प कहै ॥ ३ ॥
॥ हम. ॥
(३२२)