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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी दुर अस्कंध दुरबुद्धि संजुत्तु, भय सहाइ तं कम्मु अनंतु ।
सल्य संक सहकार मऊ ॥ सु न्यान सहावे भय विलयंतु, सल्य संक भय नंत गलंतु । न्यान अन्मोयह मुक्ति पऊ ॥ १३ ॥
॥सिद्धह.॥ दुरबुद्धि षिपिय सु न्यान स उत्तु, भय षिपनिक है अभय पउत्तु ।
निसंक संक रहियौ मुनहु ॥ सल्य संक विलयंतु सुभाउ, सु भय षिपनिक है न्यान सहाउ । सु न्यान अन्मोयह मुक्ति पऊ ॥ १४ ॥
॥सिद्धह.॥ सुयं अस्कंध सु सिद्धि पउत्तु, दुर अस्कंध सु विलय स उत्तु ।
सुयं सुभाउ सु ममल पऊ ॥ ममलह ममल सहाउ स उत्तु, न्यान विन्यान सु समय संजुत्तु । कमल सहावे मुक्ति पऊ ॥ १५ ॥
॥ सिद्धह.॥
कमलह कलियौ नंतानंतु, दिस्टि भेउ श्रुत नंत अनंतु ।।
सुयं अस्कंधह भेउ सम् ॥ कमलु पउत्तर जिनय स उत्तु, कम्मु गलिय तं नंतानंतु । कमलह परिनै मुक्ति पऊ ॥ १६ ॥
॥सिद्धह. ॥ कमलह परिनै परम सउत्तु, परमान दिस्टि तं नंतानंतु ।
कमलह समय संजुत्तु जिनु । समय संजुत्तउ कमल पउत्तु, सहकार नंत विन्यान संजुत्तु । समय सहावे समय मऊ ॥ १७ ॥
॥सिद्धह.॥ अवयास नंत तं कमल स उत्तु, न्यान विन्यानह समय संजुत्तु ।
अवयासह नंतानंत पऊ ॥ अन्मोय न्यान तह कमल पउत्तु, अन्मोयह तं कम्मु गलन्तु । अन्मोय सहावे षिपक पऊ ॥ १८ ॥
॥ सिद्धह.॥