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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी
(७२) मेवाड़ी छंद माथा गाथा १४५४ से १४७७ तक
(विषय कमल दल) उव उवन उवन पौ साहियौ,
उव उवनौ है दाता देउ । अलष जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १ ॥ जिन जिनयति जिनय सु जिनय जिनु,
__ जिन जिनियौ कम्मु उवन्नु । रमन जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ २ ॥ जं कम्मु उवन उव उवन सुइ,
तं जिनियौ न्यान उवन्नु । उवन जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ३ ॥ जं लषन लषिय सुइ अलष पौ,
तं अलषु लषिउ जिन उत्तु । उत्तु जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ४ ॥ जं गमन गमिय सुइ अगम पौ,
तं अगम अगम दर्संतु । दर्स जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ५ ॥ जं ढलन ढलिय जिन ढलन पौ,
तं ढलन समय सिद्धि रत्तु । सिद्ध जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ६ ॥
जं धरन धरिय सुइ जिन धरनु,
तं धरन समय जिन उत्तु । समय जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ७ ॥ जं दिप्ति दिपिय जिन दिप्ति पौ,
तं दिप्ति समय संजुत्तु । जिनय जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ८ ॥ जं दिस्टि इस्टि सुइ उवन पौ,
तं दिस्टि समय सम उत्तु । षिपक जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ९ ॥ जं सब्द कमल जिन उवन पौ,
तं कर्न समय प्रवेसु । सुयं जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १० ॥ जं दिप्ति दिस्टि जिन जिनय पौ,
तं समय सहज प्रवेसु । ___स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ ११ ॥ जं दिप्ति दिस्टि जिन नंत मौ,
तं समय नंत प्रवेसु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १२ ॥ जं उवन उवन उव उवन पौ,
तं उवन समय सम उत्तु । स्वामी जिन तरन विवान सु मुक्ति पौ ॥ १३ ॥
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