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श्री ममल पाहुइ जी प्रिये श्रेनि अन्मोय, उवन श्रेनि विपकु,
विपक श्रेनि मुक्ति, सिय सिद्धि रमनु ॥ १३ ॥ कवन श्रेनि न्यानु, दर्स श्रेनि कवना,
कवन श्रेनि दानु, लब्धि श्रेनि कवना । कवन श्रेनि भोउ, उवभोउ श्रेनि कवना,
कवन श्रेनि वीय, सम्मत्त श्रेनि कवना ॥ १४ ॥ सुभाइ श्रेनि न्यानु, उवन श्रेनि दर्स,
अनंत श्रेनि दानु, सहज दिपि लब्धु । श्रेनि भोउ, हिय उवन उवभोउ,
चरन श्रेनि वीय, कमल सम समऊ ॥ १५ ॥ कवन श्रेनि चरनु, सु चरन श्रेनि कवना,
कवन श्रेनि कमलु, केवल श्रेनि कवना । कवन श्रेनि समय, मुक्ति सुह रमना,
कवन श्रेनि निलय, नंत जिन रमना ॥ १६ ॥ हुवन श्रेनि चरनु, सु चरनु कर्न सुवनु,
उव उवन श्रेनि कमलु, केवल कलि कमलु । सुवन कर्न समय, मुक्ति सुह उवनु,
उव उवन उव अगमु, निलय जिन रमनु ॥ १७ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (१०) तार कमल सोहौ गाथा
गाथा २०९२ से २१२३ तक (विषय : दृष्टि-१४, विवान-१, पय, कमल दल, पदवी सतक्षरी) उव उवनौ है उवन उवन्न पौ, उव उवनौ है मुक्ति दातारू ।
जिनजू अनादि तरन जिन सोहरौ ॥ १ ॥ जिन जिनवर उत्तौ जिनय पौ, जिन जिनियौ कम्मु अपारू ।
जिनजू अनादि रमन जिन सोहरी ॥ २ ॥ जिन जिनवर जोयौ उवन पौ,
तं विंद रमन जिन उत्तु ।
जिनजू अनादि कमल जिन सोहरौ ॥ ३ ॥ उव उवनौ उवन सु समय जिनु, तं कमल रमन जिन उत्तु ।।
जिनजू अनादि रमन जिन सोहरौ ॥ ४ ॥ उव उवनौ विंद विन्यान पौ, तं विंद अर्क संजुत्तु ।
जिनजू अनादि विंद जिन सोहरौ ॥ ५ ॥ उव उवनौ दिस्टि सु इस्टि पौ, तं रस्टि रिस्टि जिन उत्तु ।
जिनजू अनादि दिप्ति जिन सोहरौ ॥ ६ ॥
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