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श्री ममल पाहुइ जी हियं च सुद्ध सहावं, अहँ ह्रींकार न्यान विन्यानं । समल कम्म विलयंतो, ममलं दिस्टि च पर्जाव विलयं च ॥ २६ ॥ ह्रींकारं दर्सन दिटुं, दर्सन दर्सेइ कम्म गलियं च । विकहा सरनि विमुक्कं, भय षिपियं ममल न्यान सहकारं ॥ २७ ॥ अहं च उवन उवएस, तारन तरनं च ममल सहकारं । सल्य संक भय षिपनं, कम्म विलयंति मुक्ति गमनं च ॥ २८ ॥ कमल सहाव उपत्ति, केवल उववन्न षिपन ससहावं । पिपिऊ कम्म उवन्नं, उववन्नं सहकार मुक्ति संदर्स ॥ २९ ॥ दरसंति लोय अवलोयं, न्यान विन्यान उववन्न कमलं च । सहकारं उववन्नं, तारन तरनं च मुक्ति संमिलियं ॥ ३० ॥ संसर्ग कम्म षिपनं, सारं तिलोय न्यान विन्यानं । रुचियं ममल सुभावं, संसारं तिरंति मुक्ति गमनं च ॥ ३१ ॥ सहकारं न्यान विन्यानं, रीनं कम्मान तिविहि विलयं च । रुचियं ममल सहावं, तारन सहकार सरीर निर्वानं ॥ ३२ ।। विन्यान न्यान सुद्धं, षिपिऊ कम्मान तिविहि जोएन । इस्ट संजोय सु ममलं, नन्दं आनंद मुक्ति गमनं च ॥ ३३ ॥ संसार सरीर सु विषयं, ममल सहावेन समल विलयंति । तारन तरन सु समयं, न्यान बलेन निव्वुए जन्ति ॥ ३४ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (२८) अन्मोय चौबीसी गाथा
गाथा ५४५ से ५६९ तक
(विषय: पय १२, दिस्टि १४) जिन दिस्टि इस्टि जिन उत्तं, जिन समय सहाव स उत्तं । जिन परिनै समय प्रमानं, जिन कमल उत्त जिन वयनं ॥ १ ॥ जिन लंक्रित जिन विन्यानं, जिन समय न्यान नित समानं । जिन नंतानंत सु दिस्टी, जिन न्यान पयो परमिस्टी ॥ २ ॥ जिन समय सहाव स उत्तं, जिन नंत नंत अवयासं । तं जिन अन्मोय सु ममलं, जिन समय कम्म तं विलयं ॥ ३ ॥ जिन षिपिय कम्म बंधानं, जिन मुक्ति दिस्टि धुव न्यानं । जिन जिनयति कम्म उपत्ती, अन्मोय विरोह विलंती ॥ ४ ॥ तं न्यान अन्मोय स उत्तं, जं नंत कम्म विलयंतं । जं न्यान अन्मोय विओयं, तं सरनि सहाव संजोयं ॥ ५ ॥ तं यह विओय किम सहिये, जं जं विओय दुह लहिये । भय षिपिय मुक्ति सं मिलिए, तं अमिय रमन सिद्धि रमिये ॥ ६ ॥
|| आचरी॥ जं न्यान अन्मोय पिओयं, तं भय षिपनिक संजोयं । भय षिपिय रमन आनंद, तं रमन विओय विनंदं ॥ ७ ॥
॥ तं यहु.॥ जं न्यान अन्मोय अनंतं, तं अमिय रमन रस जुत्तं । जं अमिय रूव आनंद, तं अमिय विओय विनंदं ॥ ८ ॥
॥ तं यहु.॥
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