________________
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणीजी
श्री ममल पाहुइ जी कललंकृत कम्मु जु दिट्ठउ समई हो,
न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १६ ॥ जं अबंभह सरनि हि सहियौ,
मेहुन सन्या संसारिऊ । जं पुनु मान कषाय संजुत्तउ,
दर्सन दिस्टिहि गलि गयऊ ॥ १७ ॥ मोह महीहर कम्मु ऊपजै,
कषायह विषय संजुत्तु समू । अन्यान दिट्ठि पर्जावह सहियो,
न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १८ ॥ चष्य अचष्यह चष्यह उत्तउ,
अवहि हि कम्मु जु ऊपजई । अन्यान दिस्टि तं कम्मु ऊपजै,
न्यान अन्मोयह गलि गयऊ ॥ १९ ॥ जहं जहं कम्मु उपत्ति स दिट्ठउ,
जहं जहं कम्मु जु ऊपजई । तहं तहं कम्मु जं विलयौ समई,
न्यान अन्मोयह समय मऊ ॥ २० ॥ अप्पहु अप्प सुधप्प संजुत्तऊ,
परमप्पह परम सु समय मऊ । न्यान विन्यानह ममल सुभावे हो,
परम न्यान सो मुक्ति गऊ ॥ २१ ॥
(४९) विवान अर्क गाथा
गाथा ९८७ से १०१५ तक
(विषय: कमल दल, पंच शब्द की भाषा,
षट् शब्द, वर्ष वृद्धि, समय, घड़ी, पहर, दिन, महिना, वर्ष) विवान विन्यान स उत्तं, विवान दिस्टि नंत संदर्स । विवान न्यान विन्यानं, विवानं वीय नंतनंतानं ॥ १ ॥ विवान सुष्य सुइ नंतं, नंत चतुस्टं च सुयं सुइ सुवनं । नंतानंत अनंतं, अनंत सुभावेन नंत प्रवेसं ॥ २ ॥ विवान अर्क सुइ अर्क, अर्क सुइ अर्क उवन संदर्स । उवन उवन सुइ मिलनं, अकै अर्कस्य मुक्ति गमनं च ॥ ३ ॥ अर्क अर्क अनंत, अनंत सुभावेन नंत प्रवेसं । नंतानंत सु गमनं, गमनं अगमस्य सिद्धि सम्पत्तं ॥ ४ ॥ अर्क अर्क सलयं, लष्यं अकै अलष्य रूवेन । अलषं अलष्य लषनं, कर्न कमलस्य सिद्धि सम्पत्तं ॥ ५ ॥ अर्क गमन सहावं, गमनं अर्क अगम रूवेन । दर्सन उवन सहावं, उवन्न आकिर्न कमल निव्वानं ॥ ६ ॥ अर्क इस्ट उवन्नं, इस्ट अर्क च उवन सुइ रुवं । उवनं उवन सु उवनं, उवनं सुइ कर्न कमल निव्वानं ॥ ७ ॥ अर्क हिययार स उत्तं, हिययारं अर्क हवयार संजतं । उवन सहाइ सु उवनं, उवनं सुइ कलन कर्न उव उवनं ॥ ८ ॥ अर्क मित मित्तानं, मितं प्रवेस मिलन सुइ चरनं । चरनं उवन सहावं, उवनं कमलस्य कर्न सुइ रमनं ॥ ९ ॥
EEEEEEEEEEEEEEEE
(२२१)