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श्री ममल पाहुड
अरी मै न्यान
जी
रमन रमिये,
अरी मै सिद्धि मुक्ति मिलिये ।
अरी मै संमत्तु रयनु धरिये,
अरी मै सुयं मुक्ति मिलिये ॥ (२)
जब जिनु उवन उवन सुइ उवने, उवन उवन चितु लायौं । उव उवन हिययार सहयार उवन पौ, उव उवनु मुक्ति दरसायौ ॥ हां जिन उवन उवन मिलिये,
जिहि उवन सिद्धि चलिये ।
हां जिन समय सरनि सरिये,
जिहि उवन मुक्ति मिलिये ॥
हां जिन ममल भाव रमिये,
जिहि सहज सिद्धि चलिये ।
हां जिन समय समय मिलिये,
हां जिन सहयार सहज मिलिये,
सहयार कम्मु
जिहि रमन मुक्ति चलिये ॥
गलिये ।
जिहि रमन मुक्ति मिलिये ।। १० ।।
विंद रमन रमिये ।
हां जिन गुप्ति न्यान मिलिये,
६ ॥
हां जिन षिपक भाव षिपिये, हां जिन हां जिन कमल कलन मिलिये, जिहि मुक्ति
७ ॥
८ ॥
९ ॥
रमन रमिये ॥ ११ ॥
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अन्मोय तरन मिलिये,
तं विंद कमल अरी मै न्यान रमन रमिये, जिननाथ सिद्धि
सम समय मुक्ति मिलिये,
जब जिनु रयन रमन जिन उवने,
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
हां जिन उत्तु वयन धरिये ॥ १३ ॥ (३)
तं दिप्ति दिस्टि पिऊ सब्द रमन जिनु,
अन्मोय न्यान चितु लायौ ।
रमिये ।
मिलिये ॥ १२ ॥
सह समय मुक्ति सिहु पायौ ॥
अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ १४ ॥
तं तारन तरन समर्थ, अब मैं पाए हैं स्वामी,
तं अर्क विंद संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी । अब परम अगम दसैंतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।
अर्क अर्क दसंतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। १५ ।।
अब समउ न विहडै सोई, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। १६ ।।
उत्पन्न मुक्ति संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।
तं विंद कमल संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ॥ उत्पन्न अर्क संजुत्तु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।
अर्क अनंतानंतु, अब मैं पाए हैं स्वामी ।। १७ ।।