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________________ श्री ममल पाहुड जी कमलह जिन उत्तउ कमलह परिनवै सु परम पऊ, परमानह कमलह लंकृत तं लीन पऊ, ममल पऊ, कमलह भय सल्य संक विलऊ || कमलह सम समय सु दिस्टि मऊ, कमलह विन्यान न्यान समऊ ॥ कल लंकृत कम्मु नंत विलऊ, कमलह कमलह सहकार सु नंति पऊ । कमलह कलियाँ सुइ न्यान पऊ, कमलह नंतानंतियऊ । कमलह परम पुनंतु ममलु ॥ नाना प्रकार अवयास जिनुत्तियऊ, अन्मोय विरोह कमलह कम्मानु न उत्तियऊ, विन्यान कमलह उववन्न संजुत्तियऊ, कमलह मऊ । विलंतियऊ ॥ कमलह पर्जाव विलंतियऊ । सुइ नंतानंत ६ ॥ ७ ॥ कमलह परु सयन न उत्तियऊ, कमलह परिनामु जिनुत्तियऊ ॥ १० ॥ कमलह हिययार स उत्तियऊ, पर्जाव विरंतियऊ । ८ ॥ ९ ॥ पऊ ।। ११ ।। १७० कमलह अन्मोय न्यान ममलु, कमलह पर्जाव सुयं विलऊ । कमलह सुइ सहजानंद मऊ, कमलह जनरंजन सुयं विलऊ ॥ १२ ॥ कमलह अन्मोय सु सिद्धि पऊ, श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी कमलह कम्मानु बंध षिपिऊ । कमलह सुइ मुक्ति सु परम पऊ, भय पिषिय भव्य सुई सिद्धि गऊ ॥ १३ ॥ - घत्ता - इय कमलेन सहाओ, परम भाउ सुड़ परम मुनी । तं परमानन्द सहाओ, ममलु मुक्ति संजुत्तु मुनी ।। १४ ।। (१७) मिरा छन्द गाथा गाथा ३०३ से ३१७ तक (विषय सक १७, जिह्वा संयम, गिरा अर्थात् वाणी की महिमा) कमल गिरा स उत्तु जिनु, न्यानेन न्यान सम उत्तियउ । भय विनासु भवुजु मुनहु, ममल न्यान संजुत्तियउ ॥ १ ॥ सु जिनह स उत्तउ न्यान पयत्तु, सु न्यान विन्यानह ममलु मुनंतु । सु भय षिपनिक है भव्वु स उत्तु, सु वानि विसेषह न्यानु कुनंतु ॥ २ ॥
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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