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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
श्री ममल पाहुइ जी उव उववन्न सु तरनं, भय षिपियं हिययार तारनं ममलं । अमिय पयो सहयारं, कम्मं षिपिऊन निव्वुए जन्ति ॥ २१ ॥ भय विनस्य भवियनं, अमियं अन्मोय न्यान विन्यानं । सह हिययार उवन्नं, तारन रूव सरूव निर्वानं ॥ २२ ॥ भय षिपिय भव्य सहकारं,अमिय रस अन्मोय तारनं मिलियं । तं विओय मुछयनं, भय षिपियं अमिय दिस्टि उवसंतो ॥ २३ ॥ भय षिपिय अमिय रस रवनं, तारन अन्मोय परम पिउ जुत्तं । जं बाधा अयर अबधं, तं रमनं दिस्टि संजोय मिलियं च ॥ २४ ॥ तं विओय किम सहियं, जं अदिस्टं च दिस्टि गलियं च । भय षिपिय अमिय अन्मोयं, दिस्टि सहकार नंत सौष्यं च ॥ २५ ॥ जिन उव सुन्न सहावं, दिप्ति दिस्टं च उववन्न ममलं च । रुइ पिउ परम परमप्पं, तरन विवान मुक्ति गमनं च ॥ २६ ॥ दत्तं पत्त विसेषं, दत्तं जं देइ सुष्य भावेन । पत्तं ममल सहावं, तत्कालं संजोय मुक्ति गमनं च ॥ २७ ॥
जं केवलि नंत नंत संदर्सिऊ,
तं उवएसु नंत ममल अन्मोयह । भय विनस्य भव्य नंत नंत तं सहिऊ,
__कम्म षय मुक्ति गमन सहकारं ॥ २ ॥ जिनेन्द विंद लोयलोय ऊर्ध सुद्ध उत्तयं,
तं न्यान दिस्टि परम इस्टि परम भाव जलपियं ।। तं कम्म घेउ मोष्य हेऊ भव्य लोय पोसियं,
आनंद नंद चेयनंद परमनंद नंदितं ॥ ३ ॥ कमट्ठ गट्ठ तं अनिट्ठ ममल भाव छिन्नियं,
तं सुद्ध न्यान सुद्ध झान नंतानंत दर्सियं । तं राय दोस मिथ्य भाव सल्य भय निकंदनो,
तं परम भाव परम उत्तु परम लष्य लष्यनो ॥ ४ ॥ अनंत रूव पर अभाव रूवतीत विक्तयं,
सरूव रूव विक्त रूव विक्त भय निरूपियं । अन्यान भाव मन सुभाव मिच्छ भय निकंदनो,
तं न्यान रूव ममल दिस्टि समल भाव विहंडनो ॥ ५ ॥ अन्यान भाव अनिस्ट रूप भय विनस्ट दिस्टियं,
तं पर पर्जाव नंत थान नंत न्यान दर्सियं । तं विषय इस्ट अनिस्ट दिस्टि ममल न्यान पंडनो.
तं पर पर्जाव समल चित्त न्यान सहाव निकंदनो ॥ ६ ॥
(३२) जिनेन्द विंद छंद माथा
गाथा ६२९ से ६३९ तक
(विषय : नन्द पांच, आत्म स्वरूप की महिमा) परम पय परम परम जिननाह हो,
परम भाव परमिस्टि इस्टि संदर्सियऊ,
अप्पा परमप्प ममल न्यान सहकारं ॥ १ ॥
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