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श्री ममल पाहुइ जी अनंत नंत न्यान दिस्टि मोह मय विहण्डनो,
निसंक रूव ममल भाव कम्म तिविहि गालनो । सरीर भाव मन सुभाव इन्द्रि भय निकंदनो,
अतीन्द्रि भाव न्यान दिस्टि कम्म मल विहण्डनो ॥ ७ ॥ तं स्यन रूव रूव रूव अप्प रूव चिंतनं,
आनंद नंद सुद्ध नंद परमनंद नंदिनं । अनेय भेय अनिस्ट रूव पर पर्जाव मुक्तयं,
तं ममल न्यान ममल झान सिद्धि सुह सम्पत्तयं ॥ ८ ॥ त्वं देव देव परम देव अप्प हियं चिंतनं,
पर सुभाव अनिस्ट रूव अप्प सहाव निकंदनं । जो एय भेय अप्प सहाव तिअर्थ अर्थ जोयनं,
सो पंच दिमि न्यान इस्टि मुक्ति पंथ सोहिनं ॥ ९ ॥ अन्मोय न्यान गुन अनंत सुद्ध पंथ दर्सियं,
तं सुद्ध भाव जिन सहाव विषय राग तिक्तयं । सो भव्य लोय न्यान उत्तु ममल भाव जुत्तयं,
सो कम्मु मुक्कु मुक्ति पंथ सिद्धि सुह सम्पत्तयं ॥ १० ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी (३३) पय संजोय छंद गाथा
गाथा ६४० से ६५० तक
(विषय : नन्द ५, पय) पय संजोय नंद आनंदह, पय परम न्यान संजुत्तऊ । तं भय षिपिय नन्द आनंदह, ममल सिद्धि संपत्तऊ ॥ १ ॥ उर्वन न्यान ममल झान, विन्यान विंद दर्सिऊ । सो सुर्क उत्तु ऊर्ध जुत्तु, सु मुक्ति रमनि रत्तऊ ॥ २ ॥ सु कमल उत्तु रमन जुत्तु, अमिय रस संजुत्तऊ । सु सल्य तिक्त सल्य मुक्कु, ससंक भय गलंतऊ ॥ ३ ॥ सु नंद नंद चेयनंद, सहजनंद नंदिऊ । सु परम नंद परम उत्तु, सु परम सिद्धि रत्तऊ ॥ ४ ॥ सु राग उत्तु सरनि जुत्तु, भयह भव भमंतऊ । सु भय विनासु भव्वु उत्तु, अमिय रस रसंतऊ ॥ ५ ॥ उर्वकार विंद सहजनंद, विन्यान विंद दर्सिऊ । सर्वार्थ सिद्धि लोयलोय, सु रमन उत्तु जुत्तऊ ॥ ६ ॥ सु अमिय उत्तु रमन जुत्तु, विन्यान विंद दर्सिऊ । सु सुर सहाउ पद संजुत्तु, परम तत्तु रत्तऊ ॥ ७ ॥ तं दिस्टि जुत्तु ममल उत्तु, उत्पन्न रिस्टि रिस्टिऊ । तं विपक दिस्टि मुक्ति रिस्टि, सु भय विनस्य भव्वऊ ॥ ८ ॥ तं कमल उत्तु ममल जुत्तु, अमिय रस रसंतऊ । उर्वन न्यान ममल झान, तिअर्थ अर्थ जुत्तऊ ॥ ९ ॥
- घत्ताइय सहाव संजुत्तऊ, न्यान मई अनुरत्तऊ। न्यानेन न्यान आलम्बनऊ, परमप्पु सिद्धि सम्पत्तऊ ॥ ११ ॥