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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी जिन गार लषु मन रंज लषु, जिन लषिय कम्मु विलयतु । जिन मोह लषु जिन अंध लषु, जिन लषियौ मोह गलंतु ॥ ११ ॥ || जिन. ॥ आवरन लषु चौ उवन लषु, जिन लषिय घाय विलयतु । जिन मिच्छ लषु सम मिच्छ लषु, जिन लषिय मिच्छ गलयंतु ॥ १२ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन लोह लषु कोहाग्नि लषु, जिन लषियौ मान सहाउ । जिन माय लषु पर्जाव लषु, जिन लषिय पर्जाव विलंतु ॥ १३ ॥ ॥ जिन.॥ जिन कम्म लषु अन्यान लषु, जिन लषि अन्यान गलंतु । जिन परुवि लषु पर्जाव लषु, जिन लषिय पर्जाव विलंतु ॥ १४ ॥ || जिन. ॥ जिन उत्तु लषु उत्ताइ लषु, जिन चेय सचेय अलषु । जिन लषिय ममल सुई उत्तु सुयं, जिन प्रिये लषु पिय उत्तु ॥ १५ ॥ || जिन. ॥ जिन नंद लषु आनंद लषु, जिन लष्य सहज आनंदु । जिन लष्य तत्तु जिन परम तत्तु, जिन परमनंद दर्सतु ॥ १६ ॥ ॥ जिन. ॥ जिन लषिय अमिय रस सुइ मिलियं, भय षिपनिक लषिय सुभाउ । जिन लषिय ममल रै धम्म मूल सुई, जिन रंज लषिय जिन उत्तु ॥ १७ ॥ ॥ जिन. ॥ वैदर्स लषिय जिन न्यान समय गन, वैदर्सति जिन उत्तु । जिन लषिय अमिय रस अन्मोय न्यान जस, भय षिपिय सिद्धि संपत्तु ॥ १८ ॥ || जिन. ॥
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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