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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
केवल मत 8 श्री सुन्न सुभाव जी
श्री सिद्ध सुभाव जी जहां सिद्ध पहिचान उपजै, तहां दान देइ, पात्र दान लेइ, सिद्ध परषि के लेइ, दात्र पात्र तदि विसेष ॥ १७ ॥ समय सहावेन समय संजुत्तं ॥ १८ ॥ समय न्यान संजुत्तं ॥ १९ ॥ उव उवन न्यान अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥ २० ॥
॥ इति श्री सिद्ध सुभाव नाम ग्रंथ जी...॥ ॥ आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य विरचितं सम उत्पन्निता ।।
सिद्धि संपातं विसेष सुन्न सुभाव ॥ १ ॥ दिप्ति - १४, दिस्टि - १४, इस्टि - १४, सर - ७, उत्पन्न - ९, उत्पन्न त्रिलोक - ३,
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०००००,०००००,०००००,०००००,०० ॥ २ ॥ अड़तालीस कोस समोसरन, मिलन १, जोयनी १, जोजन भामण्डल ४८, मुकुट १, माल २, छोरी ३, नाम ४, ठाम ५, प्रसाद ६, तागा ७, उत्पन्न ठिकानो, जो इतनों को प्रसाद पावै तो मुक्ति नृत ॥ ३ ॥ छिगारौ ठिकानों न रहि जाइ, मिलन बहत्तरि जिनाले,
औकास प्रवेस, अनंत विंजन विंद सुन्न, औकास प्रवेस, अनंत लह कोड हौंस आस मुक्ति तीर्थकर ॥ ४ ॥ दिप्ति, दिस्टि, सब्द, प्रिये, उत्पन्न साह एवं विवान पांच ॥ ५ ॥ सुर चौदह, संमिक्त हितकार, हुंतकार, औकास मुक्ति ॥ ६ ॥ पवन १, पानी २, पियासो ३, विजन ५२, वीर ५२, बावन अव्यर (५२), बावन तोले पाव रती ॥ ७ ॥ कोल्हू कांतर पांउ न देइ, रस की बेरे दोना लेड, सीधो रस पाहू को ढलै, मिल विहरै संसारु, बहुरि मिले तो मुक्ति मिले, सत प्रापत बहुत भिष्या, लष उत्पन्न लब्धि ॥ ८ ॥
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