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श्री ज्यान समुच्चय सार जी पडिमा एक दसयं, पडिमा संसार दुष्य षय करनं । पडिमा सुद्धप्पानं, दंसन दंसेइ सुद्धमप्पानं ॥ ३०२ ॥ पडिमा नाम स उत्तं, ति अर्थं सुद्धं च परम तत्त्वानं । ममात्मा सुकिय सुभावं, अप्पा परमप्प सुद्ध सं पडिमा || ३०३ ॥ पडिमा नाम स उत्तं, दण्ड कपाटेन तिअर्थ संजुत्तं । विंद स्थान सविंदं, अप्पा परमप्प सुद्ध पडिमानं ॥ ३०४ ।। पडिमा नाम विसेषं, दंसन पडिमा च दंसए सुद्धं । दंसेइ मोष्य मग्गं, दंसन पडिमा इमो भनियं ॥ ३०५ ॥ दंसन सहाव सुद्धं, पिच्छइ जानेइ सुद्ध सम्मत्तं । दंसेइ न्यान रूवं, लोयालोयं च दंसनं पडिमा ॥ ३०६ ।। दंसन पडिमा दंसइ, केवल दंसेइ न्यान संजुत्तं । लोयालोय पयासं, अवलोयं दंसनं पडिमा ॥ ३०७ ॥ दंसन अनंत न्यानं, अनंत वीरिय अनंत सुषाई । दंसेइ तिहुवनग्गं, दंसन पडिमा इमो भनियं ॥ ३०८ ॥ वय पडिमा उवएस, व्रतं जानेहि अप्प सभावं । अप्पा अप्पे सुरई, वय पडिमा संजदो सुद्धो ॥ ३०९ ।। वयं च व्रत संजुत्तं, भाव विसुद्ध विमुक्क वावारे । अप्प सरूवे सुरदो, अप्पानं झान सुरदोयं ॥ ३१० ॥ परपंच नहु दिदि, पर पुग्गलं च भाव तिक्तंति । अन्यान मिच्छ भावं, तिक्तं सयल दोस सभावं ॥ ३११ ॥ अप्पानं व्रत पिच्छदि, अप्पा परमप्प सुद्ध सभावं । न्यानमई ससहावं, अत्थि धुवं चेयना पडिमा ॥ ३१२ ॥
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सामाइयं च उत्तं, अप्पा परमप्प सम्म संजुत्तं । समय तिअर्थ सुद्धं, समतं समाइयं जाने ॥ ३१३ ॥ तिअर्थं सुद्ध सुद्धं, सम सामाइयं च संसुद्धं । परिनै सुद्ध तिअर्थ, परिनामं सुद्ध समय सुद्धं च ॥ ३१४ ।। समरूवं सम दिटुं, सम सामाइयं च जिन उत्तं । मन चवलं सुद्ध थिरं, अप्प सरूवं च सुद्ध सम समयं ॥ ३१५ ।। पोसह पडिमा उत्तं, पूर्व सहकार कारनं सुद्ध । जिन उत्तं सुद्ध दिलु, अप्प सहावेन भावना सुद्धं ॥ ३१६ ॥ पूर्वं जिनेहि भनियं, सहकारेन पोसहं सुद्धं । जं करेइ चितवन, झानं झायंति धम्म सुक्कानं ॥ ३१७ ॥ पोसह पडिमा एसो, पूर्व सहकार सुद्ध चरनानि । चेयन भाव संजुत्तं, पोसह पडिमा इमो भनियं ॥ ३१८ ।। सचित्त चित्त सुद्धं, चेयन भावेन सुद्ध सम्मत्तं । सचित्त चेयनत्वं, धम्मं झानं सचित्त भावेन ॥ ३१९ ।। चेयन सुद्ध सहावं, अप्पा परमप्प चेयना रूवं । गय संकप्प वियप्पं, चेयन पडिमा धुवं लोए ॥ ३२० ॥ मिथ्या मय कुन्यानं, रागादि दोष विषय मुक्तानं । हरितं सचित्त सवनं, तिक्तं सुद्ध भाव संजुत्तं ॥ ३२१ ।। अनुरागं अप्पानं, रागादि मिच्छ भाव परिहरनं । अप्पा परमप्पानं, अनुरागं पडिमा संसुद्धं ॥ ३२२ ।। अनुरागं भत्तीए, सुद्ध सरूवेन भत्तिभारेन । अनुराग भत्ति एसा, उवइटुं जिनवरिंदेहिं ॥ ३२३ ॥
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