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चौदह ग्रन्थ दर्शन
२.
- ४६२ गाथा
आचार मत ४. श्री श्रावकाचार जी सार मत ५. श्री ज्यान समुच्चय सार जी ६. श्री उपदेश शुद्ध सार जी ७. श्री त्रिभंगीसार जी
- १०८ गाथा - ५८१ गाथा - ७१ गाथा
ममलमत ८. श्री चौबीस ठाणा जी
१. श्री ममलपाहुइ जी
- २७गाथा
(अध्याय गद्य, सूत्र) - ३२०० गाथा
(१६४ फूलना)
केबल मत १०. श्री षातिका विसेष जी ११. श्री सिद्ध सुभाव जी १२. श्री सुन्न सुभाव जी १३. श्री छद्मस्थवाणी जी
- १०४ सूत्र - २० सूत्र - ३२सूत्र - ५६५ सूत्र
(१२ अध्याय) - गद्य ग्रंथ
(शिष्यों की नामावली)
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी को उनके स्वरूप सहित नमस्कार किया गया
है। * गाथा १५ से १७ तक- संसार, शरीर, भोग का स्वरूप और उनसे
वैराग्य की भावना। * गाथा १८ से ३० तक- जीव के अनादिकालीन संसार परिभ्रमण का
कारण। * गाथा ३१ से ३३ तक- वैराग्य भावों का जागरण। * गाथा ३४ से ४६ तक- सम्यक्दृष्टि ज्ञानी जीव की दशा का विशेष
महत्वपूर्ण कथन।
द्वितीयखण्ड गाथा ४७ से १९४ तक- आत्मा के तीन रूप एवं सुगुरू, कुगुरू,
धर्म-अधर्म आदि का वर्णन। * गाथा ४७ से ५१ तक- आत्मा के तीन रूप- परमात्मा, अंतरात्मा,
बहिरात्मा का स्वरूप। * गाथा ५२ से ६४ तक- कुदेव, अदेव की पूजा भक्ति मान्यता का
परिणाम। गाथा ६५ से ७४ तक - सच्चे गुरू का स्वरूप। * गाथा ७५ से १४ तक - कुगुरू का स्वरूप और उनकी मान्यता का
परिणाम। * गाथा ९५ से १६७ तक - अधर्म के लक्षणों के अंतर्गत-आर्त रौद्र ध्यान,
४ विकथा, ७ व्यसन, ८ मद, ४ अनन्तानुबंधी
कषाय का वर्णन। * गाथा १६८ से १९४ तक - शुद्ध धर्म का स्वरूप कथन ।
तृतीय खण्ड गाथा १९५ से ३७७ तक-अंतरात्मा सम्बदृष्टि के तीन लिंग और
बेपन क्रिया का वर्णन, जघन्य लिंग अवत
१४. श्री नाममाला जी
* ॐनमः सिद्ध
श्री तारण तरण श्रावकाचार जी
प्रथम खण्ड गाथा से ४६ तक- मंगलाचरण, वैराग्य भावना, संसार में
परिषमण का कारण, सम्बदष्टि ज्ञानी
जीव की दशा का वर्णन। गाथा १ से १४ तक - मंगलाचरण के रूप में सच्चे देव, गुरू, शास्त्र
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