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भूमिका
कि अध्यात्म नीरस विषय है, परन्तु ममल पाहुड ग्रन्थ की फूलनाओं में अध्यात्म को संगीत में भरकर इतना सरस बना दिया कि सहज में ही हृदयंगम हो जाता है। इस ग्रन्थ में आगम और अध्यात्म के अनेकों रहस्यों को गुरू महाराज ने बहुत ही सरलता से स्पष्ट कर दिया है।
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१०. श्री पातिका विशेष जी इस ग्रंथ में १०४ कारिकायें (सूत्र) हैं, इसमें संसार का स्वरूप बताया है। यह संसार एक 'खातिका विशेष' अर्थात् विशेष गड्ढा है, जिसमें जीव अपनी अज्ञानता से चार गति चौरासी लाख योनिरूप संसार में रुल रहा है, दुःखी हो रहा है। मोह राग आदि के कारण हमेशा भयभीत रहता है। चौदह राजू रूप संसार में जीव की क्या दशा हो रही है तथा इससे कैसे छूटें? यह उपाय इस ग्रंथ में विशेष रूप से समझाया गया है।
११. श्री सिद्ध सुभाव जी - इस ग्रन्थ १में २० कारिकायें हैं। साधक कैसा होता है, वह कैसी साधना करे, सिद्ध स्वभाव को प्राप्त करने का उपाय तथा सिद्ध स्वभाव की महिमा आदि अनेकों रहस्यों को इस ग्रंथ में स्पष्ट किया गया है।
१२. श्री सुन्न सुभाव जी - ३२ कारिकाओं का यह ग्रन्थ अपने आपमें बहुत महत्त्वपूर्ण है। सूत्रों में वह रहस्य भरा हुआ है, जो अपने शून्य स्वभाव का दर्शन तथा समाधि दशा को उपलब्ध कराता है। विशेष रहस्यपूर्ण विधि से शून्य स्वभाव समाधि दशा का वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है।
१३. श्री छद्मस्थवाणी जी - इस ग्रन्थ में १२ अध्याय हैं, जिनमें ५६५ सूत्र हैं, इन सूत्रों में विशेष रूप से चार प्रकार का वर्णन मिलता है१. भगवान महावीर स्वामी के समवशरण का वर्णन | २. श्री जिन तारण स्वामी के जीवन परिचय और साधना संबंधी वर्णन । ३. शिष्यों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के समाधान । ४. समय-समय पर आई हुई अनुभूतियां । इस प्रकार श्री छद्मस्थवाणी जी ग्रंथ में चार प्रकार के सूत्र हैं। सद्गुरू से पूछे गये प्रश्नों के उत्तरों में तथा अन्य विशेष महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं, गुरू महाराज का अंतिम उद्बोधन भी इस ग्रंथ में है। इस प्रकार श्री छद्मस्थवाणी जी अपने आपमें आध्यात्मिक रहस्यों से भरा हुआ विशाल और महिमामय ग्रन्थ है।
१४. श्री नाममाला जी इस ग्रन्थ में श्री गुरू महाराज के उपदेशग्राही भव्यात्माओं की संख्या व नामावली का वर्णन है। इसमें उनके उच्चादर्श की झांकी मिलती है। उनके उपदेश में जातिगत, पदगत, धर्मगत, भाषागत, देशगत कोई भेद भाव नहीं था। सर्व भव्यात्मायें सब जगह एकसा आत्म कल्याण के मार्ग का उपदेश पाते थे, उनका उपदेश सरल भाषा में होता
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श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी था, जिसमें व्यथित संसारी मानव शांति प्राप्त करता था ।
यह गद्य ग्रन्थ है, जिसमें आचार्य श्री जिन तारण स्वामी के शिष्य मण्डल का परिचय है। राजा महाराजाओं के कुटुम्ब के कुटुम्ब और अन्य ग्रामों से आये जितने जीव तारण पंथी बने, उन सबके नाम ठाम (स्थान) संख्या आदि का विस्तृत वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है। जो भव्य जीव अत्यन्त श्रद्धा भक्तिपूर्वक आत्म कल्याण का मार्ग स्वीकार करते थे, उन्हें सद्गुरू तारण स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त होता था अन्मोय जिन श्रेणि कलन मुक्ति गामिनो
वह भी इस ग्रन्थ में आया है तथा श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज की शिष्य संख्या ४३४५३३१ श्री यह भी इस ग्रन्थ से प्रमाणित है।
तारण समाज के श्रद्धास्पद केद्र तीर्थक्षेत्र
सीर्थक्षेत्र वार्षिक महोत्सव की तिथि तारण जंयती (अगहन सुदी सप्तमी) बसन्त पंचमी (माघ सुदी पंचमी) कार्तिक सुदी पूर्णिमा
फाग फूलना (चैत्र वदी अष्टमी)
इन चारों तीर्थक्षेत्रों पर प्रतिवर्ष धर्म प्रभावना के महोत्सव आयोजित होते हैं।
क्र.
क्र.
१
२.
श्री पुष्पावती जी (बिलहरी)
श्री सेमरखेडी जी
३
श्री सूखा निसई जी
४. श्री निसई जी (मल्हारगढ़)
१.
शाश्वत तीर्थधाम श्री सम्मेदशिखर जी में स्थापित अध्यात्म केन्द्र तारण भवन में समय-समय पर श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज की वाणी की प्रभावनार्थ कार्यक्रम
आयोजित किये जाते हैं।
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी
पाँच मत में चौदह ग्रंथ दर्शन
एवं ग्रन्थ के नाम
विचार मत
१.
२.
३.
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श्री मालारोहण जी
श्री पंडित पूजा जी
श्री कमल बत्तीसी जी
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गाथा संख्या
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३२ गाथा
३२ गाथा
३२ गाथा