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________________ श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी श्री ममल पाहुइ जी पर्जय सरनि नंत सुइ चरियं, वय तव क्रित संसय सहियं । विक्त रूव तं विंद रमन रस, पर पर्जय विलय सु मुक्ति पयं ॥ १४ ॥ ॥भवियन.॥ कायकलेस कलह संजोए, कृत कारित जं उत्तु पयं । वय तव क्रिय अन्यान सहावे, न्यान अन्मोय सु विलय सुयं ॥ १५ ॥ ॥भवियन.॥ कल लंकृत काय कम्मु जन उत्तं, उत्पन्न न्यान तं सुइ विलयं । न्यान विन्यान सु विंद रमन रै, पर पर्जय विलयंतु सुर्य ॥ १६ ॥ ॥भवियन.॥ वाहिज तव आयरन परम जिनु, अर्थति अर्थ सु ममल पयं । षट् कमलह तं क्रांति कलिय जिनु, विन्यान विंद रस रमिय सुयं ॥ १७ ॥ ॥भवियन.॥ षट् तवयरन चरन सहयारह, भय विनासु तं भव्वु सुयं । अर्थति अर्थह नौ भय विलयं, अन्मोय न्यान षिपि पयडि सुयं ॥ १८ ॥ ||भवियन.॥ आभिंतर तवयरन सहज सुइ, पर पर्जय तं विलय सुयं ।। परम तत्तु तं परम पयं जिनु, परम न्यान तं रमन पयं ॥ १९ ॥ ॥भवियन.॥ परम सुभावह सुयं षिपक जिन. सुइ कम्मु षिपिय तं नंत पयं । नंत न्यान तं विंद रमन सुइ, तरन विवान सु मुक्ति पयं ॥ २० ॥ ॥भवियन.॥ विन्यान विंद तं रमन अमिय रस, वीर्य नंत तं सौष्य सुयं । सूष्यम परिनाम सुयं सुइ रूवे, सुर्य लब्धि तं परम पयं ॥ २१ ॥ ॥भवियन.॥ तारन तरन विन्यान परम पय, विंद रमन तं परम सुर्य । तरन विवान समय संजोये, विन्यान रमन सिद्धि रत्तु सुयं ॥ २२ ॥ ॥भवियन.॥ पद कमला न विन्यान विंद रस रमिघ सुर्य ॥ १० ॥ तारन तान विन्याबिंदास्मन त परम सुयं ।। (२९५)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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