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भूमिका
महत् पुरुष की जीवनी, देत चितावनि टेर।
तुमहू अपने चरित को, करौ महत् का ढेर | संत पुरुषों की बाणियां जगत के कोने-कोने में मनुष्य को प्रभावित कर रही हैं, क्योंकि उनका मन अनंत ज्ञान और आनंद के समुद्र परम ब्रह्म परमात्मा सिद्धों में लीन रहता है। इससे उनका कुल पवित्र होता है और माता जो जन्म देने वाली है वह भी कृतार्थ हो जाती है और वह नगरी धन्य कहलाती है, जहाँ उनका जन्म होता है । जो उनके सत्संग से लाभ लेते हैं वे धन्यवाद के पात्र बन जाते हैं, उनके स्वार्थ का त्याग होता है, इससे उनकी बात को सब स्वीकार कर लेते हैं। उनके दर्शन से, उनके आचरण और गुणों का प्रभाव भी सब पर पड़े बिना नहीं रहता है। उनमें जो दया, क्षमा, शांति, समता, संतोष, संयमादि गुण होते हैं उनका भी असर जनसमूह पर पड़ता है। उनके यहां कोई भोजन कर जावे या वे किसी के घर आहार कर आवें तो दोनों घर पवित्र हो जाते हैं ; इसीलिये विधिद्रव्य दात्र पात्र विशेषात् तद् विशेष: कथन किया है, कारण कि उनका अन्न, धन, तन, मन और वाणी सब पवित्रता से ओतप्रोत रहती है।
गृहस्थाश्रम में भी ज्ञानवान योगी होते हैं। उच्चकोटि के ज्ञानी, योगी, गृहस्थ के घर में जन्म लेते हैं, ऐसा जन्म अतिशय दुर्लभता से प्राप्त होता है । ज्ञानी योगी के घर भी उनके उच्चादर्श के प्रभाव से उच्चकोटि की ही संतान हुआ करती है। उनके संसर्ग से लोग ज्ञानी महात्मा बन जाते हैं। सत्संग की अग्नि से पाप कर्म भस्म हो जाते हैं, तभी तो 'जानाम्नि बन्ध कर्माणां' कहा है। जैसे घास व आग के ढेर पास-पास होने पर आग घास को अपने रूप कर लेता है पर घास में शक्ति नहीं कि वह आग को अपने रूप कर सके, इसी प्रकार संसारी मनुष्यों के अज्ञान व पाप में वह सामर्थ्य नहीं कि जीवन मुक्त महान आत्मा को अज्ञानी बना सके । साधारण मनुष्यों पर अज्ञानियों के संग का असर भले ही हो जावे परन्तु ज्ञानी पर नहीं, इसके विपरीत ज्ञानी के सत्संग से अज्ञानी व पापी पवित्र हो जाते हैं तथा ज्ञानी और महात्मा बन जाते
श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी सबके प्रति समान दृष्टि रखते हैं, उनके मन में किसी के भी प्रति राग द्वेष नहीं होता ऐसे व्यक्ति ही संत होते हैं।
संत पुरुषों की महिमा और गुणगरिमा का महापुरुष स्वयं भी वर्णन नहीं कर सकते, फिर दूसरा कौन कर सकता है ? जो यत्किंचित् कहा जाता है वह आभास मात्र है। जो भी द्वादशांग रूप प्ररूपित किया गया है, शास्त्रों में जिन महापुरुषों की महिमा गाई गई है वे आज संसार में नहीं है और मिलना भी कठिन है।
महापुरुषों में जातिगत, भाषागत भेद नहीं होता, चारों वर्गों में महात्मा पुरुषों का जन्म होता है। उनकी तेजस्वी मुद्रा को देखकर ही जीवन बदल जाता है, उनके नेत्रों से देखी चीज पवित्र हो जाती है, वे ऋद्धि-सिद्धि के धारी होते हैं, उनकी दृष्टि जहाँ तक विचरती है वहाँ तक पवित्रता का प्रसार करती है,उनकी दृष्टि द्वारा हृदयगत भावों के परमाणु फैल जाते हैं, जिससे सूखे वृक्ष हरे और सूखे तालाब भी जल से भर जाते हैं ऐसा ग्रंथों में गाया गया है, फिर उनके आज्ञानुवर्ती चलने वालों का कल्याण हो जाये इसमें क्या आश्चर्य है ?
उच्चकोटि के महापुरुष कभी अपने को महात्मा नहीं बतलाते, उनका ज्ञान और चारित्र उनका आदर्श होता है, क्रिया भी उनकी निष्फल नहीं होती। महापुरुषों की आज्ञा मानकर यदि हम चलें तो हमारा कल्याण हो जाये इसमें कोई शंका की बात नहीं है। यदि उच्चादर्श के पुरुषों के साथ हमारा सम्मिलन हो जाय तो शीघ्र लाभ होता है। जैसे-जानने वाले राहगीर के साथ पथ का श्रम नहीं जाना जाता; कारण कि सारे पथ का वह जानकार होता है और हर सुविधाओं के प्रति बह सजग होता है, इसी तरह शास्त्रज्ञाता या परमात्मा के जिज्ञासु के सत्संग से हमारा कल्याण शीघ्र हो सकता है।
हम लोगों में जो निराशा है वह श्रद्धा और आत्मबल की कमी के कारण से है। हमको कभी निराश नहीं होना चाहिये; कारण जो शक्तिहीन हैं वे भी श्रद्धा से बलशाली देखे जाते हैं, उनके शरीर में जोश आता है, फिर अबल बनकर अज्ञानी क्यों बनते हो, तत्त्वदर्शी महात्माओं की आज्ञा मानने से व उनके संग करने से पापी मनुष्य भी पवित्र हो जाता है, फिर पुण्यात्माओं को सब साध्य है।
संसारी मनुष्यों और परमात्म शक्ति के बीच १. आलस्य, २. कुटुम्ब मोह, ३. विषयों की प्रीति, ४.अभिमान, ५. विश्व ममता यह पाँच रुकावटें होती हैं। महापुरुष पहले आलस्य को
महापुरुषों के चरणों के स्पर्श से भूमि भी पवित्र होकर तीर्थ स्वरूप हो जाती है। संसार में जितने भी तीर्थ हैं वे महापुरुषों की संगति से ही तीर्थ बने हैं। उनकी तीर्थ संज्ञा महापुरुषों का ही प्रभाव है । महापुरुषों में स्त्री पुरुष सभी को स्थान है, ऐसे महापुरुषों को किसी की अपेक्षा नहीं रहती, वे संसार से विरत होकर निरन्तर अपनी आत्मा में तल्लीन रहते हैं, बैर भाव रहित