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________________ श्री चौबीस ठाणा जी श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न पद कमल रमन । आत्म गुन गुपित उत्पन्न ठकार मुक्ति इस्टि। इस्टि उत्पन्न इस्ट उत्पन्न न्यान विन्यान । सुर्य सूष्यम सुभाव विन्यान विन्यान विंद । सुयं पद विंद परम तत्तु परम सुकीय सुभाव । सूष्यम क्रांति सुयं लब्धि अलब्धि लब्धि विन्यान विंद । अंग उत्पन्न । दिस्टि इस्टि सुर्क षिपक। ह्रिदय गहिर गुहिज जान पद विन्यान विंद। परिनाम कलित विन्यान। दिस्टि पूर्व सिर, अग्र सुर्क दिस्टि, दर्स विपन, न्यान नित कमल प्रियो । इच्छ हृिदय, पच्छिम विक्त रूव गुपित। वायव गुहिज रमन, उत्पन्न रमन । उत्तर ईर्ज सहकार गुहिज सहकार न्यान । ईसान उत्पन्न ऊर्ध रमन धुव उत्पन्न । अर्ध आर्ध रमन दिस्टि दिप्ति । इस्ट उत्पन्न दिस्टि । उत्पन्न दिप्ति रमन । इस्ट उत्पन्न रमन विन्यान सिद्धं धुवं तीर्थंकर रमन मुक्ति । सिद्धं धुवं रोम रोम प्रियो रमन । न्यान विन्यान मुक्ति रमन सिद्धं धुवं॥ तस्य विन्यान केन सुभावेन - जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव, दर्सन मोहांध, न्यान आवर्न, दर्सन आवर्न, मोहन आवर्न, अंतर न्यान, सक, सल्य, संक, भय, सहकार भय, मन, वचन, क्रांति भय, मन दिस्टि झडप सहकार कषाय मल मिथ्या त्रिति :३: समल उत्पन्न सहकार मिथ्या देव, मिथ्या गुरू, मिथ्या धर्म, कुदेव, कुगुरू, कुधर्म, कुतप, कुसंजम, कुपरिन, मिथ्या प्रमान, मिथ्या उदेस, मिथ्या परिनै, मिथ्या प्रमान, मिथ्या संजम, मिथ्या तप, मिथ्या परिनै विसेष विन्यान पतनं करोति । विन्यान लब्धि न भवति । विन्यान न्यान पतनं परान्मुष तस्य सहकार वनस्पति काय उत्पन्न भवति । विन्यान पतति वनस्पति काय भवतु । पयोग कमलं न भवतु पतनं करोति । तस्य सहकार अठारह सहस्र छत्तीस (१८०३६) बार अंतर्मुहूर्त मध्ये जामन मरनं भवतु ॥ भ्रमतं अनंत काल कालंतर जेन केनापि जीव विन्यान न्यान सहकार उद्देस परिनै प्रमान दिस्टि उत्पन्नं भवतु । तदि निकलै-इन्द्री अतेन्द्री, राग जिन राग, दिस्टि जिन दिस्टि, मान जिन मान, वयन जिन वयन, उक्त जिन उक्त, सहकार जिन औकास, जिन अन्मोद, जिन विपक, जिन मुक्ति, जिन सौष्य, जिन कमल, जिन रमन, जिन न्यान, जिन लंक्रित, जिन विन्यान, जिन न्यान विसेष। जिन विषय, जिन मिथुन, जिन उत्पन्न, जिन हितकार उत्पन्न, जिन सहकार उत्पन्न, जिन जान विन्यान, जिन पद परम तत्तु, जिन सुभाव, जिन सर्वार्थ, जिन अष्यर, जिन सुर रमन, जिन विंजन, जिन पद, जिन अर्थ, जिन रमन, जिन तिअर्थ, जिन समर्थ, जिन समय अन्मोद, जिन सहकार, जान जिन, जिन औकास, अर्थ जिन, अनंत जिन, अन्मोद जिन, विपक जिन, मुक्ति जिन, सुर्य लब्धि जिन, तस्य सुभाव सुद्ध सार्धं करोति । तस्य जीवस्य न्यान विन्यान सहकार निकले सुद्धं विसेष - अनंत चतुस्टय, सुष, साता, बोध, चैतन्य प्रान लब्धि । विसेष-विषय राग दोष विलयंति, आवर्न घाति कम्म विलयंति, मिथ्या, कषाय, सल्य, संक, भय विलयंति, उत्पन्न विली, भुक्त विली, विनंद विली, सुपन विली, संसरनि विली, संसय विली, पुग्गल विली, पर्जाव विली, पर सुभाव विली, अन्यान विली- न्यान आचरन परमिस्टी न्यान विन्यान अन्मोद अबलबली, विषय गली, अन्मोद न्यान अबलबली अनंत चतुस्टै सूषिम प्रतिपाद न्यान अन्मोद मुक्ति सुद्ध सिद्धं भवति ।। ॥ इति बनस्पतिकाय निरूपनं ॥ (१४३)
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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