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व्याख्यान २:
: २५: तप, सर्वशास्त्राभ्यास, तीर्थयात्रा और गुणोपार्जन ये सब समकित सहित होने पर ही मोक्षप्राप्ति में साधक हो सकते हैं, अतः सर्व प्रथम उसका आश्रय लेना चाहिये । इस प्रकार गुरुमुख से देशना पाकर वैराग्य उत्पन्न हुए महाबलकुमारने कहा-'हे भगवंत ! मैं अरिहंतद्वारा निर्देशित मार्ग का हर्षपूर्वक अनुसरण करता हूँ, अतः अपने मातापिता की अनुमति लेकर आप के पास दीक्षा अंगीकार करुंगा।" आचार्यने कहां कि " हे वत्स! धर्मकार्य में प्रतिबंध नहीं करना चाहिये ।" तत्पश्चात् महाबलकुमारने घर जाकर अपने मातापिता को प्रणाम कर कहा कि “ यदि आप की आज्ञा हो तो मेरी धर्मघोष आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण करने की अभिलाषा है । " इसको सुनकर उन्होने जवाब दिया कि " हे वत्स! तुम हमको प्राणों से प्रिय हो, तुम्हारा वियोग हम एक क्षणभर के लिये भी सहने में असमर्थ है, अतः तुम ऐसे शब्द कभी अपने मुख से न निकालो। हे पुत्र ! जब तक हम जीवित है तब तक तुम घर में ही रहो।" इन शब्दों को सुनकर कुमारने माता से कहा कि "हे माता! पहले कौन मृत्यु को प्राप्त होगा और पश्चात् कौन ? इसको जब कोई नहीं जान सकता तो फिर उत्तम यही है कि मुझे चारित्रग्रहण करने की आज्ञा प्रदान कीजिये कि जिससे तुम्हारी कुक्षिसे प्राप्त मनुष्यजन्म को मैं सार्थक बना सकूँ । जिस प्रकार पूर्व अनन्तभवों में होनेवाली मेरी अनन्त