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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : विवाह किया। और उन आठों स्त्रियों के लिये राजाने आठ स्वर्ण महल बनवाये । उन स्त्रियों को उनके पिताओंने भी प्रेमपूर्वक आठ करोड़ मोहरें, आठ करोड़ रुपये, आठ मुकुट, आठ जोड़ी कुंडल, आठ नन्दावर्त तथा सर्व प्रकार के रत्नमय आठ भद्रासन आदि अनेकों वस्तुएँ प्रदान की । ( यह गाथा श्रीभगवतीसूत्र में है)। उन आठों स्त्रियों के साथ भोगविलास करते महाबल कुमार को बहुत समय व्यतीत हुआ । एक वार श्रीविमलनाथस्वामी के संतानिये धर्मघोष नामक सूरि पांच सो मुनि के परिवार सहित हस्तिनापुर के उद्यान में पधारे। उनके आगमन की सूचना पा कर अन्य जन समुदाय के साथ वह राजकुमार भी अपनी सर्व समृद्धि सहित उनको वन्दना करने के लिये वहां गया । सूरीश्वर को वन्दना कर राजकुमार योग्य स्थान पर बैठ गया । उस समय मुनीश्वरने देशना की किः" असारमेव संसार-स्वरूपमिति चेतसि । विभाव्य शिवदे धर्मे, यत्नं कुरुत हे जनाः॥"
भावार्थ:-हे भव्यजनों ! इस संसार को असार जानकर मोक्षप्रदान करनेवाले धर्म के लिये यत्न करो।
सर्व धर्मकृत्यों का मूल समकित है, जो देव, गुरु तत्त्व के विषय में सम्यक् श्रद्धा होनेसे प्राप्त होता है। अणुव्रत, महाव्रत, दान, जिनपूजा, क्रिया, जप, ध्यान,