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व्याख्यान २ :
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रखनेवाले जो मुमुक्षु प्राणि हैं उन में गुरुपन स्थापन करना और दुर्गति में पड़ते हुए जीवों को उबारनेवाले जिनेश्वरप्रणीत धर्म में ही धर्मपत की श्रद्धा रखना सम्यग्दर्शन कहलाता है ।
यद्यपि दर्शन शब्द से उस वस्तु का बोध होता है कि जो चक्षु ते दिखलाई दे किन्तु जैन शासन में तो सत्य देव, सत्य गुरु और सत्य धर्म के तत्व का जो संशयादिक रहित सम्यग् ज्ञान होता है उसे ही सम्यग्दर्शन कहते हैं । वह ज्ञान दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम के क्षयोपशम से प्राप्त होता है । अतः जिनेन्द्र के प्रत्येक वचन पर दृढ़ विश्वासरूप विशिष्ट प्रकार के सद्भाव को 'दर्शन' समझना चाहिये | इस ' समकित ' शब्द के बतलाये अर्थ को दृढ़ करने के लिये महाबल नामक राजकुमार का दृष्टांत बतलाया जाता है:
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समकित पर महाबल राजकुमार का दृष्टान्त
हस्तिनापुर में बल नामक राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम प्रभावती था । उस राणीने सिंह के स्वम सूचित एक शूरवीर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम महाबल रखा गया । उस राजकुमार के अनुक्रम से युवावस्था में आने पर भोग भोगने समर्थ समझ कर उसके पिताने एक दिन उसका आठ राजकन्याओं के साथ