Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__ प्रज्ञापनासूत्रे भदन्त ! जीवस्य कायिकी क्रिया क्रियते त समयम् आधिकरणिकी क्रिया क्रियते, य समयम् आधिकरणिकी क्रिया क्रियते त समय कायिकी क्रिया क्रियते ? एवं यथैव आदिमो दण्डक स्तथैव भणितव्यो यावद् वैमानिकस्य,यद्देशेन भदन्त! जीवस्य कायिकी क्रिया क्रियते तद्देशेन आधिकरणकी क्रिया क्रियते ? तथैव यावद् वैमानिकस्य, यत्प्रदेशेन भदन्त जीवस्य कायिकी क्रिया क्रियते तत्प्रदेशेन आधिकरणिकी क्रिया क्रियते ? एवं तथैव यावद् वैमानिकस्य, एवमेते 'यस्य य समयं यद्देशेन, यस्स) इसी प्रकार निरन्तर यावत् पैमानिक को ।
(जं समयं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तं समयं अहिंगरणि या किरिया कज्जइ) हे भगवन् ! जिस समय जीवात्मा को कायिकी क्रिया होती हैं, उस समय क्या आधिकरणिकी क्रिया भी होती है ? ( समयं अहिगरणिया किरिया कज्जइ तं समयं काइया किरिया कज्जइ ?) जिस समय अधिकरणिकी क्रिया होती है, उस समय कायिकी क्रिया होती है ? (एवं जहेव आइल्लओ दंडओ तहेव भाणियव्वो) इस प्रकार जैसा आदि का दंडक कहा वेसा ही कहना चाहिए (जाव वैमाणियस्स) यावत् वैमानिकों को भी समझ लेवें।
(जं देसेणं भते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ त देसेणं अहिंगरणिया किरिया कज्जइ) हे भगवन् ! जिस देश से जीव को कायिकी क्रिया होती है उस देश से आधिकरणिकी क्रिया भी होती है? (तहेव जाव वेमाणियस्स) उसी प्रकार यावत् वैमानिक को।
(जं पएसेण भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ) हे-भगवन् ! जिस प्रदेश से जीव को कायिकी क्रिया होती है (त पएसेण अहिगरणिया किरिया कज्जइ ?) उसी प्रदेश से अधिकरणिकी भी क्रिया होती है ? (एवं तहेव जाव वेमाणियस्स) (एवं निरंतर जाव वेमाणियस्स) मे ५४३ निरन्तर यावत् वैमानिनु
(ज समय ण भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ त समय अहिगरणिया किरिया कज्जइ) હે ભગવન ! જે સમયે જીવને કાયિકી કિયા થાય છે, તે સમયે શું આધિકણિકી કિયા પણ याय छे ? (जौं समयण अहिगरणिया किरिया कञ्जइ त समय काइया किरिया कज्जइ ?) हे सभये माधिीि छिया थाय छे, ते समये 48 या थाय छ ? (एवजहेव आइल्लओ दंड ओ तहेव भाणियध्वो) से परे वा माहि नो यो तेवो हेयो (जाव देमाणियस्स) यावत् मानिना
(जं देसेण भते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ त देसेण अहिररगणिया किरिया कज्जई १) હે ભગવન ! જે દેહથી જીવની કાયિકી કિયા થાય છે, તે દેશથી આધિકરણિકી કિયા થાય छ? (तहेव जाव वेमाणियस्स) से प्रारे यावत् वैमानिनी
(ज पएसेण भते ! जिवस्स काइया किरिया कज्जइ) माय ! " प्रशथी अपनी यि या थाय छ ( त परसेण अहिगरणिय। किरिया कज्जइ? ) त प्रशिथी माधिलिडाञ्यिा
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫