________________
लाचार प्रदीप ]
( २१ )
[ प्रथम अधिकार होगा, तथा कल्याण होगा या अकल्याण होमा; यह सब विचार कर, मुनियों को बोलना चाहिये तथा निरन्तर धर्मोपदेश देनेके लिये अपने आगम के अनुसार अनिदित वचन ही कहने चाहिए ।। १३०-१४०।।
नो चेन्मनं प्रकुर्वन्तुखारं सर्वार्थसिद्धिदम् : धर्मशुक्ला गमात्मज्ञाः सर्वदोषामहं परं ।। १४१ ।। अर्थ - यदि ऐसे वचन ( आगमानुकूल वचन) कहने का समय न हो तो धर्मध्यान शुक्लध्यान और श्रागम को जानने वाले मुनियों को समस्त दोषों को दूर - करने बाला समस्त पदार्थों की सिद्धि करने वाला सर्वोत्कृष्ट और सारभूत मौन धारण लेना चाहिये ॥ १४१ ॥
सत्येन वा कोतिः परमा शशिनिर्मला । भ्रमे लोकत्रये सर्वे बद्ध ते सद्गुणाः सताम् ।।१४२ ।।
अर्थ- -सत्य वचन कहने से सर्वोत्कृष्ट और चंद्रमा के समान निर्मल कोत्ति, तीनों लोकों में भर जाती है तथा सज्जनों के समस्त श्रेष्ठ गुण वृद्धि को प्राप्त हो जाते हैं ||१४२॥
सत्य मंत्रेण योग्यं वा भारती विश्वदीषिका । सद्बुद्धधावतरस्येवामा मुखे सत्यवादिनां ||
अर्थ- - इस सत्यरूपी मंत्रके प्रभाव से संसार के समस्त पदार्थों को दिखलाने वाली सरस्वती श्रेष्ठ बुद्धि के साथ साथ सत्यवादियों के मुख में हो श्राकर अवतार लेती है सो योग्य हो है ।११४३ ।।
सम्पद्यते परा बुद्धि निकषप्राव सत्रिभा । विश्वतत्त्वपरीक्षायां सुधियां सत्यवाक्यतः १३१४४ ।।
अर्थ - इस सत्यवचन के प्रभाव से बुद्धिमान् पुरुषों की श्रेष्ठ बुद्धि, समस्त तत्त्वों की परीक्षा करने के लिए कसौटी के समान हो जाती है ।।१४४॥
वाक्येन मधुरेात्र, तुष्यंति प्राणिनो यथा । न तथा बस्तुदानाचं वाक्येऽहो का दरिद्रता || अर्थ -- इस संसार के प्राणी, जिस प्रकार मधुर वचनों से संतुष्ट होते हैं; उसप्रकार अन्य पदार्थों के देने से सन्तुष्ट नहीं होते; इसलिये वचनों से कभी दरिद्रता नहीं रखनी चाहिए ।। १४५ ॥
मस्वेति मधुरं वाक्यं हितं करसुखावहम् । कटुकं निष्ठुरं त्यक्त्वा, वक्तव्यं धर्मसिद्धये ॥१४६॥
अर्थ – यही समझकर, धर्मको सिद्धि के लिये, कठोर और कड़वे वचनों का