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मूलाबार प्रदीप
{ २५८ )
[पेष्टम अधिकार सिद्धांत शास्त्र के पढ़ने के अयोग्य हैं ।।२९-३०॥
निर्दोष काल में स्वाध्याय करने की प्रेरणाएतान् सदोषकालाय त्यस्वास्वाध्यायजितः । आहा प्रागमाठाचा कार्याः कालेशुभेपरे ।
अर्थ-इन सदोष कालों को छोड़कर श्रेष्ठ स्वाध्याय करना चाहिये । तथा पागम का पाठ प्रावि भी शुभ काल में ही करना चाहिये ॥३१।।।
। प्रारीना का मामी राषाढ़ादि माह की अपेक्षापूर्वाह्वत्र यदासप्तपादच्छाया भवेत्तवा । स्वाध्यायो हि गृहीतभ्योनिविकल्पेनचेतसा ।।३२।। पाषा द्विपदच्छायापुष्यमासे चतुष्पदा । यदावतिष्ठते शेषा निष्ठापनीय एव सः ।।३३।। तयोर्भासयोमध्ये कातः स्वाध्यायमोचने । प्रत्येक शेषमासानां वृद्धिहानियुतः स्फुटम् ॥३४॥ पावयोः षष्ठभागोत्र भवेत् ज्ञात्वेति योगिभिः । कर्तव्यो मुक्तये काले स्थाध्यायस्तस्यपूरितः ।। अपराल अमष्याल्लाद्विमुख्यघटिका इयम् । स्वाध्यायोहापराहाव्योप्राह्मोवःप्रयत्नतः ॥३६।। विनस्य पश्चिमे भागे सप्तपावप्रमाणका । पदावतिष्ठते छाया सदा मोक्तव्य एव सः । ३७॥ पूर्वरात्रः परित्यज्य किला घटिकाद्वयम् । गलन्तु यसरः पूर्वराविस्वाध्यायमंजसा ॥३॥ त्यक्त्वामध्याह्नराशेच काले विघटिकामितम् । स्वाध्यायोवविषयः पश्चिमरात्रिसमावयः ।।३।। माद्यमध्यासानाना प्रत्येकं विनरालयोः । त्यक्त्वाद्विघटिकाकालस्वाध्यायोयोग्यमंजसा ॥४०॥ पूर्वपश्चिमभागोत्थं शेषकालेषुसर्वदा । बुधा गुहन्तु मुचन्तुसिद्ध स्थाध्यायमूजितम् ॥४१॥
अर्थ-पूर्वाह्न के समय जब सात पर छाया हो जाय तब मुनियों को अपने सब विकल्प छोड़कर स्वाध्याय प्रारंभ करना चाहिये । आसाढ़ महीने में जब छाया दो पर रह जाय तथा पौष मास में जब छाया चार पर रह जाय तब मुनियोंको स्वाध्याय समाप्त कर देना चाहिये । यह प्राषाढ़ और पौष महीने में स्वाध्याय समाप्त करने का काल बतलाया। बाकी के महीनों में छाया की हानि वृद्धि के अनुसार स्वाध्याय को समाप्ति करनी चाहिये । प्रत्येक महीने में दो पर का छठवां भाग घटाना बढ़ाना चाहिये अर्थात् श्रावण में दो पैर और एक पैर का तीसरा भाग, भादों में वो पर और एक पर का दो भाग, आश्विन में तीन पर, कातिक में तीन पैर एक पैर का तीसरा भाग, मर्गासर में तीन पर एक पैर का दो भाग तथा पौष में चार पर छाया रह जाय तब स्वाध्याय समाप्त करना चाहिये । मोक्ष प्राप्त करने के लिये इसप्रकार योग्य समय में तत्वों से भरा हुमा स्वाध्याय करना चाहिये । (माघ में तीन पैर एक पैर का दो भाग, फाल्गुन में तीन पैर एक पैर का तीसरा भाग, चैस में तीन पैर, बैसाख में दो पर