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मूलाचार प्रदीप]
( ४२२)
[ दशम अधिकार पुनः क्षपक संयोगों का त्याग करके निंदा पूर्वक प्रतिक्रमण करता हैयेनसंयोगमूलने प्राप्तादुःखपरंपरा । मया तं कर्मजंसर्वसंयोग व्युत्सजाम्यहम् ।।२७४६।। मूलोसरगुरणादोमामध्येनाराधितागुणः । यः कश्चित्तं त्रिधादोषं गहें प्रतिकमामि च ।।२७४७।।
अर्थ-जिस कर्म के संयोग से मुझे प्रनादि काल से आज तक दुःखों की परंपरा प्राप्त हुई है, उन कर्मों से उत्पन्न हुए समस्त संयोगों को मैं त्याग करता हूं। मूलगुण और उत्तरगुणों में जो कोई गुण मैंने अाराधन न किया हो उस दोष को मैं मनवचन-कायसे गर्दा करता हूं, निंदा करता हूं और उसके लिये प्रतिक्रमण करता है। ॥२७४६-२७४७॥
पुनः सात भयादि की निंदा करता हैभयान सप्लमवानष्टौ चतुः संशास्त्रिगौरवाम् । गहेंहं च त्रयस्त्रिशदाताधना हि सर्वथा ॥२७४८॥
अर्थ-- बाबों को ही निदा करता है, आठों मदों की निंदा करता हूं, चारों संज्ञाओं की निंदा करता हूं, तीनों गौरव वा अभिमानों की निंदा करता हूँ और तेतीस आसादनाओं की सर्वथा निदा करता हूं ॥२७४६।।
पुनः सप्त भय एवं अष्ट मदों का त्याग करता हैइहामुत्रभयोचारणागुप्तिमृत्युभयानि च । वेदनाकास्मिकश्चते जहामि भयसप्तकम् ।।२७४६।। विज्ञानेश्वयंमाझा च कुलजासितपोबलाः । रूपं सस्सु गुणवत्रतेषु गच्छामि नो मदम् ।।२७५०।।
अर्थ-इस लोक का भय, परलोक का भय, अपनी रक्षा न होने का भय, अगुप्ति ( नगर में परकोट के न होने ) का भय, मृत्यु का भय, वेदना का भय और श्राकस्मिक भय ये सात भय हैं, मैं इन सातों भयों का त्याग करता हूं । ज्ञान का मद, ऐश्वर्य का मद, पाशा का मद, कुल का मद, जाति का मद, तप का मक, बल का मद
और रूप का मद ये आठ मद हैं । मैं इन गुरणों में होनेवाले सब मदों का त्याग करता हूं ॥२७४६-२७५०।।
क्षषक ३३ प्रासादनावों के त्याग का संकल्प करता है-- पंचवावास्तिकायाश्चषड्जीवजातयस्ततः । महावतानिपंचप्रवचनस्याष्टमातरः ।।२७५१॥ पदार्था मन बोक्ता हि त्रस्त्रिशवितिस्फुटम् । पासावमा जिन जातु मनाक कार्यामया न भो ।५२॥
___ अर्थ-भगवान जिनेन्द्रदेव ने पांच अस्तिकाय, छह प्रकार के जीव, पांच महावत, पाठ प्रवचन मातृकाएं नौ पदार्थ बतलाये हैं, इन सबको संख्या तेंतीस होती