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मूलाधार प्रदीप]
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[ द्वादश अधिकार जीत संत है, उनके समस्त पर पांच सिपो चोरों के साथ-साथ अवश्य नष्ट हो माते हैं और बहुत ही शीघ्र मोक्ष लक्ष्मी के साथ-साथ तीनों लोकों की लक्ष्मी प्राप्त हो जाती है ।।३१९८-३१६६॥
परीषहों को नहीं जीतने से हानिपरीषहभटेभ्यो ये भीता नश्यन्ति कातराः । सच्चारित्नरणात्प्राप्यतेपकीसिजगस्त्रये ॥३२.०11 हास्यं स्वजनसाधूनांमध्येचतुगताविह । प्रमुत्रपापराकेनस्युविश्वदुःखभाजनाः ।।३२०१॥
अर्थ-~-जो कायर मुनि परीषह रूपी योद्धाओं से डरकर भाग जाते हैं वे उस जारिकरूपी युद्ध में तीनों लोकों में फैलने वाली अपकीति प्राप्त करते हैं, अपने स्वजन और साधुओं के मध्य में उनकी हंसी होती है तथा परलोक में पापकर्म के उदय से उनको चारों गतियों के समस्त महा दुःख प्राप्त होते हैं ।।३२००-३२०१॥
धैर्य रूपी तलवार से परीषहों को जीतने की प्रेरणामत्वेति सुधियोनित्यंस्पारोमिवपरोषहान् । जयन्तु धंयंखड्गेन मुक्तिसाम्राज्यसिद्धये ॥३२०२।।
अर्थ-- यही समझकर बुद्धिमान मुनियों को मुक्तिरूपी साम्राज्य सिद्ध करने के लिये अपनी धैर्य रूपी तलवार से अपने शत्रुओं के समान ये समस्त परोषह सदा के लिये जीत लेनी चाहिये ॥३२०२॥
ऋद्धियों के कथन की प्रतिज्ञा एवं उनके भेदमीरयमुनोन्त्रारामृषीणां सत्तयोभवाः । समासेन प्रवक्ष्यामि तपोमाहात्म्यव्यक्तये ॥३२०३॥ ऋद्धिबघाह्वया वाद्याक्रिविविक्रियाह्वया । तपऋजिलसिलौषद्धिरससंझका: ।।३२०४।। क्षेत्रहियोगिमामेताद्धयोष्टविधाःपराः । अनन्योखिलसहियाना तपःशुद्धिप्रभावाः ।।३२०५।।
अर्थ- अथानंतर-मुनियों के, ऋषियों के श्रेष्ठ तप के प्रभाव से अनेक ऋद्धियां उत्पन्न होती हैं । अतएव उस तप का माहात्म्य प्रगट करने के लिये संक्षेप से उन ऋद्धियों का स्वरूप कहता हूं । बुद्धिऋद्धि, क्रियाऋद्धि, विक्रियाऋद्धि, तपऋद्धि, बलऋद्धि, प्रौषधिऋद्धि, रसऋद्धि और क्षेत्रऋद्धि ये पाठ प्रकार को ऋद्धियां मुनियों के होती हैं। ये सब ऋद्धियां सपश्चरण की शुद्धता के प्रभाव से प्रगट होती हैं और समस्त सुखों को उत्पन्न करनेवाली होती हैं ॥३२०३-३२०५।।
बुद्धि ऋद्धि के भेद व क्रिया ऋद्धि के भेदकेवलावधिसनाने अनःपर्यबोधनः । मौजकोष्ठायेशुद्धीपावानुसारिसंशका ।।३२०६।।