Book Title: Mulachar Pradip
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 537
________________ मूलाचार प्रदीप] ( ४६२) [ द्वादश अधिकार वा ताम्यामन्तरेणेवायोजनमामिनः । प्राकाशगामिनो झेयाः कुशलाः बजने च खे ।।३२१७॥ अर्थ-आकाशगामिनी ऋद्धि को धारण करनेवाले मुनि चलने में अत्यन्त चतुर होते हैं तथा पर्यकासन से बैठकर वा अन्य किसी आसन से बैठकर वा कायोत्सर्ग से खड़े होकर वा परों को उठाते रखते हुए वा परों को बिना उठाए रक्खे अनेक योजन चले जाते हैं, उसको आकाशमामिनी ऋद्धि कहते हैं ॥३२१६-३२१७।। विक्रिया ऋषि के भेदअरिणमा महिमा नाम्नी लघिमा गरिमा तत: । प्राप्तिा प्राकाम्यमो शित्वंवशित्वं वशकारकम् ।। तर्थवातिधातोन्तर्बानमवृश्यकारणम् । कामरूपित्यमित्याद्या विकिचिरनेकधा ।।३२१६।। अर्थ-विक्रिया ऋद्धि के अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्य, प्राकाम्य, ईशत्व, वश करनेवाली वशित्व, अप्रतिधात, अदृश्यता का कारण अंतधान और कामरूपित्य आदि अनेक भेद हैं ॥३२१८-३२१६॥ तपोतिशय ऋद्धि के ७भेद का कथनउपोधीप्ततपस्तप्तोमहघोरतपस्ततः । सर्वकार्यविधीशक्तस्तपोधोरपराक्रमः ॥३२२०॥ धोरायन्सगुणब्रह्मचर्यस्वप्नेप्यखवितम् । सत्तपोसिशद्धिश्चषामता सप्तपासताम् ॥३२२१॥ अर्थ-अग्रदीप्ततप, तप्ततप, महाघोरतप, समस्त कार्यों के सिद्ध करने में समर्थ ऐसा घोर तप, घोर पराक्रम, घोरगुण और स्वप्न में अखंडित रहनेवाला घोर ब्रह्मचर्य इसप्रकार तपोतिशय ऋद्धि के सात भेद हैं ॥३२२०-३२२१।। बल ऋद्धि का स्वरूप एवं भेदमनोवाक्कायमेवेन विषा बसविरुच्यते । सागपाठचिन्तादौसत्तपश्चरणक्षमाः ।।३२२२॥ अर्थ- मनोबल, वचनबल और कायबलके भेद से बलऋद्धि के तीन भेद हैं। वे मुनिराज इस बलऋद्धि के समस्त अंगों का पाठ और चितवन क्षणभरमें कर लेने के लिये समर्थ हो जाते हैं ॥३२२२॥ औषधि ऋद्धि के भेदप्रामखेलाव्यजल्लमलोविटसावपिस्ततः । तवास्यवियोवृष्टिवितरितियोगिनाम् ॥३२२३।। विश्वरोगहराजेयात्रौषशिः पराष्टयाः । सत्तपोवृत्तपादिमाहात्म्यष्यक्तिकारिणी ॥३२२४॥ अर्य-प्राम, खेल, जल्ल, मल, विट, सवौषधि, प्रास्य विष और दृष्टि विष ये समस्त रोगों को हरण करनेवाली औषधि ऋद्धियां आठ प्रकार की हैं। ये सब

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