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मूलाचार प्रदीप ]
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[एनादश अधिकार जाते हैं ।।२८७२-२८७३।।
प्रायश्चित के दश भेदमालोचनं त्रिशुद्धमाप्रतिक्रमणं च तद्वयम । विधेकोयतनसर्गस्तपच्छेद: म्वदीक्षया ।।२८७४। मूल च परिहारोयथद्धानंदशसंख्यकाः । प्रायश्चित्तस्य भेदा हि भवाश्येते विशुद्धिदाः ।।२८७५ ।।
अर्थ-मन-वचन-काय की शुद्धता पूर्वक पालोचना करना, प्रतिक्रमण करना, बीनों करना, विवेक, ध्युत्सर्ग, तप, स्वदीक्षा का छेद, भूल, परिहार और श्रद्धान ये दस समस्त व्रतों को शुद्ध करनेवाले प्रायश्चित्त के भेद होते हैं ॥२८७४-२८७५।।
प्रायश्चित के १० भेद किसके गुण व किसके दोष रूप होते हैंविपरीता प्रमोयोषा जायन्तेमप्रमादिता ! सम्पगारिता मग तुशाः पुलिस राम् ।।७६।।
अर्थ-यदि इन प्रायश्चित्तों के विपरीत प्राचरण किया जाय तो ये ही दश दोष हो जाते हैं तथा ये दोष प्रमादियों को अवश्य लगते हैं। यदि इन्हीं प्रायश्चित्तों के भेदों को अच्छी तरह पालन किया जाय तो सज्जनों के बसों को शुद्ध करनेवाले ये ही बस गुण हो जाते हैं ।।२८७६॥
मुक्ति के कारणभूत ८४ लाख गुणों का कथनएतवंशगुणचश्वारिंशत्सहस्रसद्गुणाः । अष्टलक्षाधिका युक्त्याप्राक्तनागुणिता युधे ।।२८७७।। लक्षाश्चतुरशीतिश्वभवेयुःपिण्डिसागुणाः । सर्वदोषारिहतारोमुनीनां मुक्ति हेतवः । २८७८।।
अर्थ- ऊपर जो पाठ लाख चालीस हजार गुणों के भेद बतलाये हैं उनके साथ इन दस से गुणा कर देने से चौरासी लाख गुण हो जाते हैं। ये सब गुण मुनियों के समस्त दोष रूपी शत्रुनों को नाश करनेवाले हैं और मुक्ति के कारण हैं । २८७७. २०७०1
कैसे गुणों को धारण करनेवाले पूज्य पद प्राप्त होते हैंएतर्महागुणान्तित्रिजगत्पूज्यतापवम् । गणेशजिनचा याविमूर्ति च गुणशालिनः ॥२८७६।।
अर्थ-जो महा पुरुष इन गुणों को धारण कर अपनी शोभा बढ़ाते हैं वे पुरुष इन गुणों के माहात्म्य से तीनों लोकों के द्वारा पूज्य पदको प्राप्त होते हैं और गणधर सीकर संवा पत्रावर्ती भादि को महा विभूति को प्राप्त होते हैं ॥२८७६॥
उत्तम गुणों के धारण करनेवाले महापुरुषों की उभय लोक में कैसी महिमा होती हैपंपाच प्रमातहोयसकारपूजनम् । नमस्कारस्तवादीनिगुणिमश्चपदेपदे ॥२८४०।।