________________
मूलाचार प्रदीप]
( ४६२ )
[ एकादश अधिकार प्राप्ति होती रहती है तथा कामी पुरुषों का हृदय कभी शुद्ध नहीं हो सकता इसलिये उनका कल्याण भी नहीं हो सकता ।।३००८॥
ब्रह्मचर्य पालने की प्रेरणाजास्वेसिधीधना नित्यंयोगशुढचाविमुक्तये । पालयन्तुविरक्त्याहो ब्रह्मचर्य सुधर्मदम् ।।३००६।।
___ अर्थ-यही समझकर विद्वान् पुरुषों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये मन-वचनकाय की शुद्धता पूर्वक तथा परिणामों में विरक्तता धारण कर श्रेष्ठ धर्म देनेवाला यह ब्रह्मचर्य सदा पालन करते रहना चाहिये ।।३००।
दश धर्म पालने की प्रेरणाएषोदश विधोधर्मोमुक्तिस्त्रीहृदयप्रियः । क्षमा दलक्षणविश्वः कर्तव्योमुत्तिफाक्षिभिः ॥३०१०॥
अर्थ-इसप्रकार यह दश प्रकार का धर्म है और मुक्तिस्त्रीके हृदय को अत्यंत प्रिय है अतएव मोक्ष की इच्छा करनेवाले मुनियों को उत्तम क्षमा आदि समस्त धर्मों को धारण कर सवा इसका पालन करते रहना चाहिये ।।३०१०।।
धर्म की महिमा एवं उसे पालने की प्रेरणान घमंसशोधुरिहामुत्रहितंकरः । नावधर्मसमः कल्पमः कल्पितभोगदः ।।३०११॥ चिन्तामरिण न धर्मामाश्चिन्तिलार्यशतप्रदः । धर्मतुल्योनिधिनास्तिहाखण्डो या सुहद्वरः ॥३०१२।।
नधर्मसग्निभं पुंसां पाथेयं परजन्मनि । सहगामोमवचिन्नान्योपद्विाशर्मवः शुभः ॥३०१३॥ धर्माद्विना न कोयन्यो मोक्ष नेतुनराधमः । उपतुं नरकाद्वाही दातु चेन्नाविसत्पवम् ।३.१४॥ इस्माथस्य फलं शास्त्राप्रबरंसुष्ठशक्तितः। भजध्वधर्ममेकं च त्यक्त्यापापसुलार्थिनः ।।३०१५।।
अर्थ-इस संसार में इस लोक और परलोक दोनों लोकों में हित करनेवाला धर्म के समान अन्य कोई बन्धु नहीं है तथा इसी धर्म के समान इच्छानुसार भोगों को देनेवाला अन्य कोई कल्पवृक्ष नहीं है। इस धर्म के समान सैकड़ों चितित पदाओं को देनेवाला कोई चिंतामणि रत्न नहीं है, अथवा इस धर्म के समान कोई अखंर निषि नहीं है और इस धर्म के समान अन्य कोई श्रेष्ठ मित्र नहीं है। मनुष्यों को परजन्म में जाने के लिये इस धर्म के समान कोई पाथेय ( मार्ग का व्यय ) नहीं है तथा कल्याण करनेवाला शुभ रूप ऐसा वा साथी भी इस धर्म के सिवाय अन्य कोई नहीं है । धर्म के सिवाय अन्य कोई भी मनुष्यों को मोक्ष ले जाने में समर्थ नहीं है.अथवा से उद्धार करने के लिये भी तथा इन्द्रादिक श्रेष्ठ पद देने के लिये भी धर्म
: