Book Title: Mulachar Pradip
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 508
________________ " मुलाचार प्रदीप ] ( ४६३ ) { एकादश अधिकार अन्य कोई समर्थ नहीं है । श्रतएव सुख की इच्छा करने वालों को इस धर्म का ऐसा श्रेष्ठ फल समझकर अपनी शक्ति के अनुसार पापों का त्याग कर इस एक धर्म का ही सेवन करना चाहिये । ३०११-३०१५३॥ किसको धारण कर मोक्ष स्थान प्राप्त किया जा सकता है सुविसु धर्म विश्वनार्थसुं दार्यं दशविघमगदोषं ये चरन्त्यात्मशक्त्या । त्रिभुवनपतिसेव्यंशमसारं च भुक्त्या जिनप्रतिविभवं ते यान्तिमोक्षगुणाविधम् ॥३०१६ ॥ अर्थ - इसप्रकार यह दश प्रकार का धर्म तीनों लोकों के इन्द्रों के द्वारा पूज्य है और समस्त दोषों से रहित है। ऐसे इस धर्म को जो अपनी शक्तिके अनुसार धारण करते हैं वे तीनों लोकों के इन्द्रों के द्वारा सेवनीय ऐसे सारभूत सुखों का अनुभव कर तोर्थंकर की विभूति को प्राप्त करते हैं और अंतमें अनेक गुणों के समुद्र ऐसे मोक्षस्थान में जा विराजमान होते हैं ।। ३०५६ अन्तमें धर्म को नमस्कार करके प्राचार्य पापों के नाश की याचना करते हैंefutureferri धनदो धर्मयन्ते विदो, धर्मवसदाप्यतेवरसुखं धर्माभक्त्या नमः । धर्मान्नास्यप रोगुणाष्टजनको धर्मस्थलानिः क्रिया: धर्म मेदतोमनः प्रतिदिनं धर्म पापं जहि ।। ३०१७ । । इति श्रीमूलाधारोपकारूपे महाग्रंथे भट्टारक श्रीसकल कोर्तिविरचिते शीलपुरादशलाक्षणिक धर्मवर्णनो नामेकादशमोऽधिकारः । अर्थ - यह धर्म लक्ष्मी और धन की इच्छा करने वालों को धन देता है, विद्वान लोग ही इस धर्म को धारण करते हैं, इस धर्म से हो श्रेष्ठ सुखों को प्राप्ति होती है, इसीलिये मैं इस धर्म के लिये भक्ति पूर्वक नमस्कार करता हूं। इस धर्म के सिवाय सम्यक्त्व आदि भाठों गुणों को देनेवाला अन्य कोई नहीं है, क्रियाकर्म या धर्मानुष्ठान ही इस धमकी खानि है प्रतएव मैं अपने मनको प्रतिदिन धर्ममें ही लगाता हूं, हे धर्म तू मेरे पापों को नाश कर ।।३०१७ इसप्रकार आचार्य श्रीसकलकोति विरचित भूलाचार प्रदीप नामके महाग्रन्थ में शीलगुण दशलक्षण धर्म को निरूपण करनेवाला यह ग्यारहवां अधिकार समाप्त हुआ ।

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