Book Title: Mulachar Pradip
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 521
________________ मूलाचार प्रदीप] ( ४७६ ) [बादश अधिकार शिखर पर मनुष्य लोक के समान एक निस्य स्थान है, जहाँपर सिद्ध भगवान शुद्ध आत्मा से उत्पन्न हुए अनंत सुखों का अनुभव किया करते हैं ॥३१०२-३१०६॥ लोक अनुप्रेक्षा को समझने वाले की प्रेरणाइति लोकत्रयं ज्ञास्वा तन्मूद्धस्थं शिधालयम् । हस्वामोहं गायश्चसाधयन्तुवियोवृतम् ।।३१०७।। अर्थ-इसप्रकार तीनों लोकों का स्वरूप समझकर और उसके मस्तक पर मोक्ष का स्वरूप समझकर विद्वान पुरुषों को सम्यग्दर्शनादिक धारण कर शीघ्र ही मोह का नाश कर मोक्ष प्राप्त कर लेनी चाहिये ।।३१०७॥ बोधिदुर्लभ भावना का स्वरूपयुगच्छिद्रेप्रवेश्वसमिलाया यथाम्बधी । दुर्लभोऽनन्तसंसारेनुभवोत्रतागिनाम् ।।३१०८।। अर्थ-यदि किसी समुद्र में एक और बैल के कंधे का जग्रा डाला जाय और उसी समुद्र में दूसरे किनारे पर उस जए के छिद्र में पड़ने वाली बांस की कोल डालो जाय जिसप्रकार उन दोनों का मिलना तथा उस जए के छिन्त्र में उस बांस की कील का पर जमालया डिन है. हा प्रसार में परिभ्रमण करते हुए जीवों को मनुष्य जन्म की प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है ॥३१०८।। आर्यदेश उत्तम-कुल प्रादि की प्राप्ति की क्रमशः दुर्लभता का निर्देश - पचिल्लब्धेमनुष्यत्वेप्यायवेशोतिदुर्लभः । तस्मात्सुकुरनमत्ययं बुर्लभकल्पशाखिवत ।।३१०६ ।। कुलतोदुर्लभंरूपं रूपावायुश्चदुर्घटम् । प्रारोग्यमायुषोमारिएपटूनिसुलभानि न ।।३११०।। म्योपि सुमतिः साध्वी निष्पापासुष्ठदुर्लभा । मतेः कषायहोनत्वं विवेकातिदुर्लभम् ।।३१११॥ एतेभ्यः सद्गुरो सारः संयोगोदुलंभस्तराम् । संयोगादर्भशास्त्रापाश्रवणधारण नणाम् । ३११२॥ सुगम न ततः श्रद्धानंनिश्चयोतिवुर्लभः । ततःसद्दर्शनशानेविशुद्धिःसुष्टदुलभा ॥३११३॥ तप्तो निर्मलचारित्रंदुष्प्राप्यनिधिवत्तराम् । लब्धेष्वेतेषुसर्धेषुयावज्जीव निरन्तरम् ।।३११४॥ सर्वदामिरवद्याचरणमत्यन्तदुर्घटम् । तस्मात्समाधिमृत्युः स्यानिषिवर्सभःसताम् ।।३११५।। अर्थ- यदि कदाचित् किसी काल में मनुष्य जन्म की प्राप्ति भी हो जाय तो प्राय देश में जन्म होना अत्यंत दुर्लभ है । यदि कदाचित् आर्य देश में भी मनुष्य जन्म प्राप्त हो जाय तो कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान श्रेष्ठ उत्तम कुल में जन्म होना अत्यंत कठिन है । इसी प्रकार उत्तम कुल से सुन्दर रूप का प्राप्त होना दुर्लभ है, उससे पूर्ण प्रायु का प्राप्त होना दुर्लभ है । पूर्ण प्रायु से भी नीरोग शरीर का प्राप्त होना अत्यंत

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