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लाचार प्रदीप ]
( ४७७ )
[ द्वादश अधिकार
दुर्लभ है और नोरोग शरीर की प्राप्ति होनेपर भी इन्द्रियों की चतुरता प्राप्त होना कभी सुलभ नहीं हो सकता । कदाचित् इन्द्रियों की चतुरता भी प्राप्त हो जाय तो पापरहित श्रेष्ठ बुद्धि का मिलना अत्यंत दुर्लभ है । यवि काचित् निष्पाप बुद्धि भी प्राप्त हो जाय तो कषाय रहित होना और विवेक का प्राप्त होना अत्यन्त दुर्लभ है । इन समस्त संयोगों के मिल जानेपर भी सारभूत श्रेष्ठ गुरु का संयोग मिलना प्रत्यन्त दुर्लभ हैं । यदि कदाचित् श्रेष्ठ गुरु का भी संयोग मिल जाय तो धर्मशास्त्रों का सुनना तथा उनका धारण करना उत्तरोतर अत्यन्त दुर्लभ है । कदाचित इनका भी संयोग मिल जाय तो उन धर्मशास्त्रों में कहे हुए पदार्थों का श्रद्धान करना उनका निश्चय करना अत्यंत ही दुर्लभ है । तथा उस श्रद्धान से भी सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में विशुद्धि रखना अत्यंत ही दुर्लभ है । कदाचित् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान की विशुद्धि भी प्राप्त हो जाए निधि के मिलने के निर्मन सात्रि का प्राप्त होना अत्यंत दुर्लभ है । कदाचित् इन सबका संयोग प्राप्त हो जाय तो अपने जीवन पर्यंत निरंतर सर्वदा निर्दोष चारित्र का पालन करना अत्यंत ही दुर्लभ है । यदि कदाचित् यह भी प्राप्त हो जाय तो सज्जनों को निधि मिलने के समान समाधिमरण का प्राप्त होना प्रत्यंत दुर्लभ है ।। ३१०६-३११५।।
कौन जीव बोधि के फल को प्राप्त करता है
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इतिदुर्लभवोधि ये प्राप्य यत्नेन षीधनाः । सायन्ति शिवावीनि तेषां बोधिफलं भवेत् ।। ३११६ । ।
अर्थ - इस प्रकार अत्यंत दुर्लभ ऐसे बोधि रूप रत्नत्रय को पाकर जो विद्वान् प्रयत्न पूर्वक मोक्षाबिक को प्राप्त कर लेते हैं उन्हीं को बोधि का फल प्राप्त हुआ सम कना चाहिये ॥३११६ ॥
कौन जीव संसार में परिभ्रमण करते हैं
बोधिज्ञा मे कुर्वते मोक्षसाधने । प्रमायं वीर्धसंसारे ले भ्रमतिविषेशात् ।।३११७।।
अर्थ --- जो सूर्ख पुरुष इस रत्नत्रय रूप बोधि को पाकर मोक्ष के सिद्ध करने में प्रमाद करते हैं वे पुरुष अपने कर्मों के उदय से वीर्घकाल तक इस महा संसार में परिभ्रमण किया करते हैं ।। ३११७।।
किनका बोधि प्राप्त करना सफल है---
मवेतिबोधिसत्मंप्राध्यशोध शिवधियम् । साथमस्तु बुधायत्मार्थन सरसफलं भवेत् ।।३११८ ।।