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मूलाचार प्रदीप ]
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[ তাহা অধিকার अर्थ-"शास्त्रों में यह सुना जाता है कि वे लोग श्रेष्ठ योग धारण करने वाले महा तपस्थियों के लिये प्रातिहार्य प्रगट करते हैं उनका अतिशय प्रगट करते हैं, परन्तु यह कहना प्रलापमान है यथार्थ नहीं है क्योंकि मैं बड़े बड़े घोर तपश्चरण तथा दुर्धर अनुष्ठान पालन करता हूं तो भी देव लोग मेरा कोई प्रसिद्ध अतिशय प्रगट नहीं करते इसलिये कहना चाहिये कि यह वीक्षा लेना भी व्यर्थ है" इसप्रकार के कलुषित संकल्प विकल्प को जो मुनिराज अपने सम्यग्दर्शन को विशुद्धि से कभी नहीं करते हैं उसको बुद्धिमान लोग प्रदर्शन परीषह जय कहते हैं ॥३१७४-३१७६॥
परीषहों को सहन करने की प्रेरणा--- एते कर्मोदयोल्पनादाविशतिपरीषहाः । सबंशयाघनाशाय सोढव्यामुक्तिगामिभिः ॥३१७७।।
अर्थ-ये बाईस परीषह अपने-अपने कर्मों के उदय से प्रगट होसी हैं इसलिये मोक्ष प्राप्त करनेवाले मुनियोंको अपने पाप नाश करने के लिये अपनी सब शक्ति लगा कर ये परीषहों को सहन करना चाहिये ।।३१७७॥
किस-किस कर्म के उदय से कौन कौनसी परोषह होती हैज्ञानावरपरकेनप्रज्ञाशानपरोषही। वर्शनाभिधमोहोदयेनादर्शनसंजकः ॥३१७८।। लाभान्तरायपाकेनस्यावलाभपरीषहः । नान्याभिधानिषद्याचाकोशोयांचापरीषहः ॥३१७९॥ स्पास्सस्कारपुरस्कारोमानायकषायसः । श्ररत्यरतिनाम्नोवेदोक्यास्त्रीपरोषहः ॥३१८०।। अवनोयोदयेनात्र क्षुत्पिपासा परीषहः । शीतोष्णाख्यौ तथा वंशमशको हि परीषहः ॥३१८१।। शय्या पर्यावधोरोगस्तृरणस्पर्शोमलाह्वयः । एकादश इमे पुसांप्रजायन्ते परीषहाः ।।३१८२॥
अर्थ-इन परीषहों में से ज्ञानावरण कर्म के उदय से प्रज्ञा और प्रज्ञान परोषह प्रगट होती हैं। वर्शन मोहनीय कर्म के उदय से प्रदर्शन परीषह प्रगट होती है। लाभांतराय कर्मके उदय से अलाभ परीषह होती है । नाम्न्य परीषह, निषद्या, आक्रोश, यांचा और सरकार पुरस्कार परोषह मान कषाय नाम के चारित्रमोहनीय कर्मके उदय से होती है, परति परीषह परति नाम के.नोकधाय चारित्र मोहनीय के उदय से होती है और स्त्री परोषह वेद नाम के नोकषाय रूप चारित्नमोहनीय कर्म के उवय से होती है । इसप्रकार सात परीषह चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से होती है । क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, देशमशक, शय्या, चर्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल ये ग्यारह परीषह वेदनीय कर्म के उदय से होती है ॥३१७५-३१८२॥
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