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भूसाचार प्रदोप]
( ४५१)
[एकादश अधिकार बुद्धिमानों को पूर्ण प्रयस्न के साथ नित्य ही क्षमा धारण करनी चाहिये ।।२६३२२६३३॥
उत्तम मार्दव धर्म के कथन की प्रतिज्ञाइत्येक लक्षणं सारं धर्मस्यास्यायधीमताम् । क्षमास्यं धर्ममूलं व द्वितीयं मार्दवं बधे ॥२६३४॥
अर्थ-इसप्रकार बुद्धिमानों के लिये धर्मका मूल और सारभूत ऐसे एक उत्तम रूप धर्मका लक्षण कहा । अब आगे दूसरे उत्तम मार्दव का लक्षण कहते हैं ।।२६३४।।
मार्दव धर्म का लक्षणसत्ससमेषुसर्वेषुसमात्यादिषुचाष्टसु । मृदुनिश्चित्तवाककानिहस्य तन्कृतंमदम् ।।२६३५॥ क्रियतेमभावोयोस्खिलाहकारजितः । तबमलक्षणं नेयं मार्दवं सस्कृपाकरम् ।। २६३६।।
अर्थ-ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर ये अभिमान के आठ कारण बतलाये हैं, इन सबको उत्तमता प्राप्त होनेपर भी मुनियों को अपने कोमल मन-वचन-काय को धारण कर इन पाठों मदों का त्याग कर देना चाहिये तथा सब तरह के अभिमानों का त्याग कर अपने कोमल परिणाम धारण करने चाहिये । श्रेष्ठ दया को पालन करनेवाला यही मार्दव धर्म का लक्षण है ॥२६३५-२६३६॥
कोमल एवं कठोर परिणामों के फम का निर्देशअसशीलसमस्तानि यान्तिसम्पूर्णता मताम् । सुमार्ववेन मुक्तिस्त्रीदत्ते चलिंगनं दृढम् ।।२६३७।। त्रियोगमावस्वेन भिणां धर्मउल्वणः । उत्पश्यतेगुणविश्वः साद्धं विश्वसुखाकर: ।।२९३८।। काठिन्यपरिणामेन जायते पापसूजितम् । क्षयोखिलनतावोनानि च स्वभ्रसंबलम् ॥२६३६।।
अर्थ- इस मार्दव धर्म के कारण सज्जनों के समस्त व्रत और शील पूर्ण हो जाते हैं तथा इस मादव धर्म से ही मुक्तिस्त्री दृढ़ प्रालिंगन देने को तत्पर रहती है । मन-वचन-काय तीनों को कोमल रखने से धर्मात्मा पुरुषों के समस्त गुणों के साथ-साय समस्त सुखों को देनेवाला सर्वोत्कृष्ट धर्म प्रगट होता है । तथा कठिन परिणामों को रखने से प्रबल पाप उत्पन्न होता है, समस्त नतों का नाश होता है और प्रत्यन्त निद्य ऐसा मरक गति का साधन प्रगट हो जाता है ।।२६३७-२६३९॥
___ मार्दव धर्म के धारण करने की प्रेरणाइतिसन्मदुकाठिन्यचित्तयोःफलमंजसा। गुभाशुभंविदित्याहोहत्याकठिनमानसम् ।।२६४०।। विश्वसस्वकृपामसं मावं सुष्ठपत्नतः । कुर्वन्सुमुनयोधर्मशिवश्रीसुझड़यये ॥२६४१॥