________________
मुलाचार प्रदीप ]
( ४५६ )
[ एकादश विकास
क्षैः समयः पंच यत्रसंवर मातृकाः । यत्नेन प्रतिपालयन्तेऽपहृसाक्ष्यः स संयमः || २६६८ ॥
अर्थ -- महा ज्ञानी और तीनों गुप्तियों को पालन करनेवाले महा मुनियों के उत्कृष्ट शरीर में बल होने के कारण जो रागद्वेषका सर्वथा अभाव हो जाता है उसको उपेक्षा कहते हैं । जो चतुर मुनि प्रयत्नपूर्वक संबर को उत्पन्न करनेवाली पांचों समितियों का पालन करते हैं उसको अपहृत संयम कहते हैं ॥२६६७ - २६६८ ।।
संयम के उत्कृष्ट ५ भेद
सामाविकाभिषं छेदोपस्थापनसमाह्वयम् । परिहारविशुद्धि सूक्ष्म साम्परायन्नामकम् । २६६६।। यमाख्याताथ्य चारित्रं पंचमेवा इमेपराः । संयमस्य याचारितास्यः शिवंकराः ।। २६७० ।।
अर्थ – सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसांवराय और यथापात ये चारित्र के उत्कृष्ट मेव हैं। ये सब मोक्ष की प्राप्ति करानेवाले हैं और संयम के हो उत्कृष्ट भेव कहलाते हैं। ऐसा बुद्धिमानों को समझ लेना चाहिये ।।२६६६२६७०॥
सामायिक चारित्र का स्वरूप
सर्वसाद्ययोगानां सर्वयायच्चवजितम् । निवास्तुतिसुहृच्छत्रु दृषद् स्नादिवस्तुषु ।। २६७१ ।। सुखदुःखादिसंयोगे समता करणं बुधैः । विधीयते त्रिशुष्या तद् वृत्तंसामायिकाह्वयम् ॥१२६७२ ॥
अर्थ- जहां पर बुद्धिमान पुरुष मन-वचन-काय की शुद्धता पूर्वक समस्त सावद्यरूप (पापरूप) योगों का सर्वथा त्याग कर देते हैं तथा निंदा स्तुति में, शत्रुमित्र में, रत्न और पाषाण में और सुख दुःखादि के संयोग में समता धारण करते हैं, उस चारित्र को सामायिक नामका चारित्र कहते हैं ।।२६७१-२६७२॥
छेदोपस्थापना संयम का स्वरूप
देशकाल निशेधार्थ : प्रमादेन च कारणं । अंगीकृतव्रतादीनां जातात चारदोषतः १२९७३ ॥ प्रायश्चित्तस्वनिन्दार्थ : यद्विशोधनमंजसा । क्रियतेवतिभिस्तद्धि देवोपस्थापनमतम् ।।२९७४ ॥
अर्थ--- किसी देश काल के कारण वा किसी की रुकावट के कारण या प्रमाद से अथवा और किसी कारण से यदि स्वीकार किये हुए व्रतों में कोई अतिचार लग जाय तो अपनी निंदा, गर्हा आदि के द्वारा प्रायश्चित्त धारण कर उस प्रतिचार संशोधन करना, दोषों की शुद्धि कर व्रतों को शुद्ध करना छेदोपस्थापन नाम का संयम कहलाता है ।।२६७३-२६७४।१